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नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
जौन एलिया
नज़्म
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तो तेरी निगाहों में वो ताबनाकी
थी मैं जिस की हसरत में नौ साल दीवाना फिरता रहा हूँ
नून मीम राशिद
नज़्म
ये अपना इशक़-ए-हम-आग़ोश जिस में हिज्र ओ विसाल
ये अपना दर्द कि है कब से हमदम-ए-मह-ओ-साल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जो कुछ न होगी तो होगी क़रीब छियानवे साल
छिड़ी थी हिन्द में जब पहली जंग-ए-आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
किन किन रियाज़तों से गुज़ारे हैं माह-ओ-साल
देखी तुम्हारी शक्ल जब ऐ मेरे नौनिहाल