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नज़्म
अवतार पयम्बर जन्नती है फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बद-क़िस्मत माँ है जो बेटों की सेज पे लेटी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तबाही के फ़रिश्ते जब्र के शैतान हाएल हैं
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
देख तुझ पर इल्म की भरपूर पड़ जाए न ज़र्ब
भाग इस पर्दे में हैं शैतान के आलात-ए-हर्ब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हर एक बग़ावत छोड़ी है हर एक शरारत रुख़्सत है
अब घर में फ़रिश्ते आते हैं शैतान ने आना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
छोटे से ये बच्चे हैं और इतनी बड़ी लकड़ी
शैतान की ये ख़ाला हाथों में है क्यूँ पकड़ी
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
सियाही बन के छाया शहर पर शैतान का फ़ित्ना
गुनाहों से लिपट कर सो गया इंसान का फ़ित्ना