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बुरा ख़ावंद

मीर बाक़र अली

बुरा ख़ावंद

मीर बाक़र अली

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    स्टोरीलाइन

    यह उन औरतों की कहानी है, जो हर समय अपने पतियों की बुराइयाँ करती रहती हैं और उनमें कमियां तलाश करती हैं। ऐसी ही औरतों के बारे में कहा गया है कि उन्हें सबसे पहले अपने गरीबान में झाँकना चाहिए कि आख़िर पति क्यों उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं? क्या कारण है कि पति अपनी पत्नियों के साथ अच्छा सुलूक नहीं करते? पत्नियाँ इन बातों पर गंभीरता से विचार करेंगी तो जान सकेंगी कि बुराई पतियों में नहीं बल्कि स्वयं उनमें है।

    अक्सर औरतें शिकायत करती हैं कि ख़ावंद बुरा है, ये वो सच कहती हैं, लेकिन मैं उनको इस तरफ़ मुतवज्जा करती हूँ कि पहले वो ये तो देखें कि वो भी, बुराई के माद्दा-ए-हसद, ग़ुस्सा, ख़ुदग़रज़ी, ख़ुदबीनी से पाक हैं या नहीं। इन्सान को शक और शुबहा मुकद्दर नहीं करता जो जैसा होता है, वो दूसरों को भी वैसा ही देखता है, हाँ अगर तुम दूसरों से मेहरबानी चाहती हो, तो पहले ख़ुद मेहरबान बनो और उनको अगर अपने से सच्चा चाहती हो तो सच्ची पहले ख़ुद बनो, जैसा दोगी वैसा लोगी तुम्हारी दुनिया तुम्हारे ख़्यालात का आईना है, जैसी तुम्हारी सूरत होगी वैसी ही तुम्हारे सामने आएगी। अगर हाथ को आग में डाल दोगी, तो क्या होगा, जल ही जाएगा, दुनिया में बड़ी बदबख़्ती ग़ुस्सा और हसद है, उनको जितना बढ़ाती रहोगी, ये आग तेज़ होती जाएगी, जो तुम्हारी ज़ात को जला कर ख़ाक कर देगी। इसके ख़िलाफ़ मुहब्बत, शराफ़त, नेक नीयती, ये सब फ़हर्त बख्श हैं, जिस वक़्त इन्सान समझ गया इन मसाइल को उस वक़्त उसमें मज़बूती पैदा हो जाती है। जो शख़्स हर हालत में साबिर रहता है और तमाम हालतों को ज़रूरी लवाज़म ज़िंदगी जानता है वो तमाम तकलीफ़ों को क़ाबू में ले आता है तो ये तकलीफ़ें उस वक़्त नीस्त-ओ-नाबूद हो जाती हैं। जिस तरह से मुसीबत अंदर पैदा होती है, आराम भी उसी तरह अंदर पैदा होता है।

    मैं ये सब तुम्हारे ही वास्ते लिख रही हूँ और तुम ही से ये गुफ़्तगु कर रही हूँ, ग़ौर से सुनो और दिल में जगह दो अगर तुम इन बातों को इख़तियार करने का मुसम्मम इरादा करलोगी तो तुम्हारी ज़िंदगी में ग़ज़ब की तबदीलियां नज़र आयेंगी, और तुम इस से फ़ायदा उठाओगी। अक्सर औरतें माँ बाप को इल्ज़ाम देती हैं कि वो बदबख़्ती का बाइस होते हैं, नहीं बल्कि तुम ही अपनी तकालीफ़ का सबब हो क्योंकि तुम हर वक़्त अपनी ज़िंदगी को बदल सकती हो।

    अगर तुम किसी बेदर्द और ज़ालिम आक़ा की नौकर हो और वो तुमसे बुरी तरह से पेश आता है तुम उसको अपना सबक़ समझो और उसके साथ तुम शराफ़त से पेश आओ और सब्र और तहम्मुल से काम लो और जो नुक़्सान तुम्हें पहुंचा है उससे ये काम लो कि अपने में दीनी और रुहानी ताक़त हासिल करो और उससे अपने आक़ा को निहायत नर्मी से सबक़ दो कि वो ख़ुद शर्मिंदा होगा और तुम में रुहानी क़ुव्वत हासिल होगी। अपने क़सूर ढ़ूढ़ने में अपने ऊपर रहम करो, शायद ग़ुलामाना अलामतें मिल जाएं, जब तुम अपने नफ़स की ग़ुलाम होगी तो किसी की मजाल नहीं जो तुमको ग़ुलाम बनाए। जब तुम नफ़स अमा्अरा को जीत लोगी तो तमाम मुसीबतों पर ग़ालिब जाओगी, फिर तुम ख़ुद देख लोगी कि जो तुमको सता रहा है, वो ख़ुद शर्मिंदा हो कर तुम्हारी गु़लामी इख़तियार करेगा, तुम इस मुग़ालते को दूर करो। दूसरा तुम पर ज़ुल्म नहीं कर सकता, तुम ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म कर रही हो, दूसरे पर इल्ज़ाम लगाओ, अपने ऊपर इल्ज़ाम लगाओ, नेकी से बाज़ आओ, अगर तुम नेकी के ख़िलाफ़ करोगी तो सब्र की क़ुव्वत तुम में से जाती रहेगी, जो कुछ तुमको मयस्सर हो उसमें मुस्तइदी से काम लो, वर्ना हमेशा के लिए तुम मुसीबत में मुब्तला रहोगी, अगर तुम आक़ा की मुवाफ़िक़त करोगी, तो तुम्हारी क़ुव्वत दो गुनी और काम की हो जायेगी, ये तुम्हारा रात-दिन का मुशाहिदा है कि एक लकड़ी चूल्हे में लगाओ तो शोला नहीं देती जब दो लकड़ियाँ मिल जाएँगी तो शोला पैदा होगा।

    तुम अपने ख़ावंद के साथ हंसी-ख़ुशी ज़िंदगी बसर करो और जो मयस्सर हो उसपर क़नाअत करो। अगर तुम्हारे पास महल नहीं है तो तुम अपनी झोंपड़ी को फ़िर्दोस बना सकती हो, अगर क़ालीन नहीं है तो हंसी ख़ुशी और महर-ओ-मुहब्बत की बातों का फ़र्श ऐसा बिछा सकती हो कि ऊपर लेटे से हर करवट और हर पहलू आराम ही आराम है, और ये वो फ़र्श है कि जिसको बारिश ख़राब कर सकती है और धूप। तुम ज़िंदगी के थोड़े वक़्त से मुफ़ीद काम लो, अगर ऐसा करोगी तो ज़्यादा वक़्त तुमको मयस्सर आएगा और तुम काहिल और बे परवाह बन जाओगी। तुम्हारी सल्तनत तुम्हारे अंदर मौजूद है, जब तबीयत को इधर मुतवज्जा करोगी तो तुम्हारी मुसीबतें आसान हो जाएँगी, जिस क़दर तुम अपने नफ़स की कुव्वतों पर ग़ालिब रहोगी उसी क़दर दुनिया के मुआमलात को समझ सकोगी , जहालत ही बाइस-ए-तकलीफ़ होती है, जहालत से तुम हर चीज़ को क़ुव्वत देकर अपने ऊपर तारी कर लेती हो, तुम देखो जिस वक़्त तुमको ग़ुस्सा आता है तो तुम उसको रफ़ा तो नहीं करतीं, बल्कि ये कोशिश करती हो कि मैं बढ़कर बात करूँ, तो तुम ही इन्साफ़ करो कि दूसरा भी तुम ही जैसा है, वो भी ऐसा ही चाहेगा, तो क्या होगा कि झगड़ा बढ़ जाएगा और झगड़े में सिवाए नुक़्सान के कोई फ़ायदा नहीं, क्योंकि ग़ुस्से की इब्तिदा जुनूँ और इंतिहा पशेमानी, फिर ये बताओ कि इस ख़राबी का बाइस कौन हुआ, तुम या दूसरा और फिर तुम ख़ावंद को बुरा कहो, ग़ुस्से का ज़हर बदन में सरायत करता है, जो शख़्स नेक बन जाता है, वो दुनिया को ज़ेर कर लेता है, जब इन्सान नादारी और कमज़ोरी को मग़्लूब कर लेता है तो अंदर से ख़ुद बख़ुद एक ग़ैर मग़्लूब और आलमगीर ताक़त पैदा हो जाती है।

    नेक दुनिया को ज़ेर कर लेता है और दौलतमंद अक्सर ख़ुशी से महरूम रहता है, अक्सर मेरी बहनें शिकायत करती हैं कि नौकर हमारे पास नहीं ठहरता, बूवा कुछ हमारे नमक ही की ये तासीर है।

    सुनो भाग जाने का ऐब उनमें नहीं है, बल्कि तुम अगर देखो तो मालूम होगा कि वो ऐब तुम ही में है, उस ऐब को अपने ही में ढूंढ़ो और दर्याफ़्त करो कि वो क्या शय है जो दूसरों के दिलों को बिगाड़ देती है। तुम तो नौकरों के साथ मेहरबानी से पेश आओ, उनके आराम का ख़्याल रखो, उनकी बिसात से ज़्यादा काम लो, जो ख़िदमत इस पर जायज़ है वो ख़िदमत लो बल्कि उसके साथ वो करो कि जब सा तुमको तुम्हारा सच्चा ख़्याल बताए, फिर वो तुमसे अच्छी तरह से पेश आएगा। बस यही रम्ज़ है, अगर इस रम्ज़ को समझ गईं तो बेड़े पार हैं।

    अक्सर का क़ौल है कि हमारा कोई दोस्त नहीं, ये कह कर वो औरों पर इल्ज़ाम थोपते हैं, बल्कि वो ऐब ख़ुद उनकी ज़ात में है। तुम दुश्मनों से मुहब्बत करो तो दोस्त ख़ुद तुम्हारे पास आजाऐंगे, जो शख़्स ख़ुदग़रज़ी इख़तियार करता है वो अपने दुश्मन आप पैदा करता है और जो उसके ख़िलाफ़ है वो दोस्तों से घिरा रहता है। लड़ाई , ताऊन, क़हत, ये तुम्हारे बेजा ख़्याल से पैदा होते हैं। नफ़रत , ग़ुस्सा, ख़ुदबीनी, ग़रूर, तमअ, नफ़स परस्ती, ज़िद ये सब अफ़्लास की जड़ें हैं और इसके ख़िलाफ़ मुहब्बत, शराफ़त, रहम, फ़य्याज़ी ये सब दौलत की सौतें हैं। हर शख़्स का अंदाज़ा उसकी मुहब्बत से करो, जो शख़्स जज़्बों को क़ाबू में कर लेता है वो सब के साथ मुहब्बत से पेश आता है, जैसे समुंदर की तह सुनसान है जहां किसी तूफ़ान का असर नहीं होता, इसी तरह दिल है, अगर उसके अंदर तुम ग़ौर करो तो तुमको मालूम होगा कि दिल की तह अमन से भरी हुई है। बुरी बातों का असर बाद तक रहता है जब आदमी क़ुदरत को समझ लेता है तो अपने को मिट्टी-आग का पुतला नहीं जानता, बल्कि उसको ये मालूम हो जाता है कि मैं कौन हूँ और किस वास्ते पैदा किया गया हूँ, और जिस्म को जानता है कि ये मेरा मकान है और मैं इसका मालिक हूँ। तुम ख़ावंद की ज़ात से अपने को अलग समझो। देखो टहनी दरख़्त से अलग होकर गो सारी सिफ़ात उसमें दरख़्त की सी, सूरत, पत्ते, कोपल मौजूद हैं लेकिन थोड़ी देर में वो मुर्झा कर फ़ना हो जाएगी। उसी तरह से जब तुम अपने आपको अलग रखोगी तो क्या होगा, जैसा टहनी का हश्र हुआ। आग जब तक चूल्हे में है अंगारा बाहर राख, फ़क़ीर घर के अंदर शाह बाहर गदा। जो शख़्स ग़ुस्से और जज़्बों से काम लेता है वो अपनी ताक़त कम कर देता है। ख़्वाहिश मिस्ल समुंदर के ला इन्तहा शय है। तुम जितना उसके पूरा करने की ख़्वाहिश करोगी वो और भी ज़्यादा होती जाएगी क्योंकि पानी जितना समुंदर में आएगा उसका शोर सवा होता जाएगा। ख़्वाहिश दोज़ख़ का मुल्क है कि तमाम मुसीबतें वहीं आकर जमा होती हैं और तर्क-ए-ख़्वाहिश जन्नत है और ये दोनों तुम्हारे इख़तियार में हैं। जब तुम ये समझने लगोगी कि ख़्वाहिश की हक़ीक़त क्या है तो तमाम जज़्बों पर ग़ालिब जाओगी। ये समझ कर तुम अपने इरादे पर क़ायम रहो, दो दिला शख़्स कामयाब नहीं होता। तुम अब तक जिन वहशियाना ख़्वाहिशों का शिकार बनी रहीं अब तुम उन पर इक़तिदार पैदा करो और बदगोई, कहल कहला कर बिला किसी सबब के हँसना लगो और बेमानी बातें कि उनमें सिवाए नुक़्सान के कोई फ़ायदा नहीं है, तर्क करो, जोश या जज़्बे से काम लेना गोया क़ुव्वत का कम करना है। जिस क़दर तुम अपने नफ़स की कुव्वतों पर ग़ालिब रहोगी, उसी क़दर तुम दुनिया के मुआमलात को समझ सकोगी। तुम्हारा ख़्याल तुम्हारी एक तस्वीर है जो दूसरों के आईना-ए-दिल पर पड़ कर और वहां से मुनाकिस हो कर तुम पर बुरा या भला असर पैदा करेगी। दुश्मनी और फ़साद और कीना ये सब बदी के गोया क़ासिद हैं, जो बुरे ख़्यालात को तुम्हारे दिलों में उक्साते हैं, जब तुम इन क़ासिदों को दूसरों की तरफ़ भेजती हो तो दूसरा उनको ज़बरदस्त करके और ख़िलअत पहना कर तुम्हारी तरफ़ रवाना करते हैं और जो नेक हैं वो उसके ख़िलाफ़, अच्छा वो है जो बुरी कुव्वतों पर क़ादिर हो, और बुरा वो है जो उन कुव्वतों के बस में हो। उसके हासिल करने की सूरत इससे बेहतर नहीं कि इन्सान अपने को क़ाबू में रखे। अगर तुम अंदरूनी कुव्वतों के बस में रहोगी तो बैरूनी मदद की मुहताज रहोगी। दुनिया में कोई शय ऐसी नहीं जो रुह से पैदा होती हो। इन सब मुसीबतों की जड़ गुनाह हैं और ये क्यों हैं कि तुमको मुख़्तलिफ़ अशिया का इल्म नहीं, जब तक किसी शय का इल्म नहीं होता उस वक़्त तक आदमी बेक़रार रहता है। एक बच्चा शम्मा पकड़ने की ज़िद किया करता था और उसकी माँ उसको रोकती रहती थी। एक रोज़ माँ उसकी किसी काम को गई हुई थी और बच्चे का क़ाबू चल गया, और उसने दौड़ कर शमा को पकड़ लिया, नतीजा मालूम हो गया, फिर उसने ज़िद की। जब तक उसको शम्मा के जलाने का इल्म होता बेक़रार रहता, जब इल्म हो गया बे-क़रारी जाती रही। तुम हसद, तमअ, ग़ुस्सा की तो मुतीअ रहो और कामिल सेहत की उम्मीद करो तो क्या होगा कि हमेशा बीमारी के पेच में मुब्तला रहोगी। ग़ुस्से में सही फ़ैसले की क़ुव्वत नहीं होती। अगर तुम अपने नफ़स को नेक ख़्याल में लगाओगी ख़ुद नेक हो जाओगी, जब फ़ुज़ूल ख़्यालात तुम्हारे ज़हन से निकल जाऐंगे तो राहत ही राहत है। हम एक जिस्म के आज़ा हैं, अगर जिस्म में किसी आज़ा को तकलीफ़ होगी तो क्या होगा कि तमाम जिस्म बेचैन होगा। जाहिल अपना मक़सद निकालने में तमाम दुनिया को अगर नुक़्सान पहुंचे तो दरेग़ नहीं करता, मुहब्बत तुम्हारी ज़रूरत के वक़्त तुम्हारी पुश्तपनाह् हो जाएगी। अगर तुम दिल से काम को करना चाहते हो तो अपनी समझ से फ़ायदा उठाओ और जो तुम्हारे ख़्याल में आया है शुरू करो, जुर्रत या हौसला जादू का असर रखता है और इसके साथ ज़हानत और ताक़त सब कुछ जाती है। शुरू करने की देर है , इंशाअल्लाह इख़तिताम को पहुंच जावेगा।

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