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मम्मी

MORE BYमहेनद्र नाथ

    स्टोरीलाइन

    यह एक ऐसी बूढ़ी अंग्रेज़ औरत की कहानी है, जो हिंदुस्तान में रहते हुए लड़कियाँ सप्लाई करने का धंधा करती है। साथ ही उसे हिंदुस्तानियों से सख़्त नफ़रत भी है। उसके ग्राहकों में एक नौजवान भी शामिल है जो उसे मम्मी कहता है। मम्मी भी उसे बहुत चाहती है। नौजवान के लिए मम्मी की यह चाहत पलक झपकते ही जिंसी हवस में बदल जाती है और वह उसकी बाँहों में समा जाती है।

    मम्मी, यू आर ग्रेट मम्मी। मेरे पास आओ, विस्की का एक और पैग लो ना।

    डोंट बी सिल्ली माई सन। मम्मी चिल्लाई।

    बी गुड मदर। सिर्फ़ एक पैग और। मम्मी विस्की की बोतल से एक पैग डालती है और पीने वाले हाथ में ग्लास देती है। यू आर ग्रेट डार्लिंग। थोड़ी बर्फ़, ये बर्फ़ कहाँ से लाई हो, सुबह मैंने नौकर को भेजा लेकिन उसे बर्फ़ मिली। मम्मी यू आर स्वीट। मेरे पास आओ, मेरे क़रीब।

    डोंट बी सिल्ली माई सन। मम्मी फिर चिल्लाई।

    अगर मेरे पास आओगी तो मैं चला आऊँगा, मैं तुमसे कितनी मोहब्बत करता हूँ, मैं तुम्हें कितना पसंद करता हूँ मम्मी। तुम्हारी क़सम, मुझे कुछ मालूम नहीं कि मैं तुमको क्यों पसंद करता हूँ, लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ मम्मी, मेरे पास आओ, मेरे क़रीब, तुम्हारा हाथ किधर है...?

    तुमने बहुत पी है माई सन।

    नहीं मम्मी अभी मैं और पियूँगा, जी भर के पियूँगा, तुम शराब पिलाती जाओ मैं पीता जाऊँ, शराब कितनी अच्छी चीज़ है, शराब पी कर मैं बहुत बातें करता हूँ, इधर उधर की बातें, इश्क़ और मोहब्बत की बातें, तुम्हारी बातें, ग़ुलामी की बातें, मम्मी तुम्हारे हाथ बहुत ही ख़ूबसूरत और मुलायम हैं, नर्म-ओ-नाज़ुक। मम्मी ज़ोर से क़हक़हा लगाती हैं।

    ज़ोर से मत हँसो मम्मी, इस क़हक़हे से बुढ़ापे की बू आती है, तुम ज़रा लतीफ़ अंदाज़ से हँसो, दबी-दबी सी हँसी, ख़ुशगवार हँसी, प्यारी और मीठी हँसी, यू आर वाक़ई ग्रेट, एक और पैग।

    बिल्कुल नहीं।

    मैं तुम्हारे क़रीब आऊँगा, तुम्हारे साथ बैठूँगा।

    जाओ...

    क्या तुम्हें किसी बात का डर नहीं।

    मम्मी! मैं तुम्हारा कीं अल्फ़ाज़ से शुक्रिया अदा करूँ, तुमने जिस लड़की का पता दिया था, मैं उसीसे मिलने गया था।

    कहाँ?

    बम्बई में डार्लिंग।

    फिर क्या हुआ?

    मम्मी वो लड़की मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आई, देखते ही मुझे उससे नफ़रत होगई, मुझे वो बिल्कुल पसंद नहीं आई, ऐसा मालूम होता था जैसे वो मुझे अजनबी समझ रही है, मम्मी मैं तो तुम्हारी सिफ़ारिश लेकर गया था, फिर भी उसने सीधी तरह बात की। मुझे क्या ग़रज़ थी कि उसे मनाता। बहुत मग़रूर थी वो, अपने आपको मालूम नहीं क्या समझती थी। उसके सुलूक, उसके बर्ताव, उसकी बातों से अयाँ था कि वो हर हिंदुस्तानियों को पसंद नहीं करती और मेरी जेब में सिफ़ारिश के अलावा रूपये भी थे, मुफ़्त का माल तो नहीं था मम्मी।

    मुझे उम्मीद थी कि वो इस तरह Behave करेगी। मम्मी ने शराब के ग्लास को ख़त्म करते हुए कहा।

    मम्मी मेरे क़रीब आओ...मरे नज़दीक, मेरे पास आओ, ज़रा, ज़रा इधर सरक आओ, हाँ इतनी जल्दी बूढ़ी क्यों होगई हो?

    एक दिन तुम भी बूढ़े हो जाओगे, बिल्कुल मेरी तरह सिर्फ़ dad बन कर रह जाओगे। लेकिन हाँ औरतें बहुत जल्द बूढ़ी हो जाती हैं।

    मम्मी तुम मुझे पसंद क्यों करती हो।

    क्योंकि तुम अच्छे हो, क्योंकि तुम ख़ूबसूरत हो, जवान हो, तुम इतने ज़ोर से क़हक़हे लगाते हो कि मेरे बूढ़े जिस्म में तवानाई सी जाती है, मैं जवान लड़कों की सोहबत में बैठ कर ख़ुश रहती हूँ, मुझे हँसी और क़हक़हों से इंतहाई मोहब्बत है और तुम... रुक जाती है।

    जो कुछ कहना चाहती हो कह डालो।

    यही कि तुम कमीने नहीं हो। ये कह कर मम्मी मुस्कुराई।

    मम्मी एक पैग और, तुम्हारे हाथों की क़सम जो इतने नर्म और ठंडे हैं, मुझे तुम्हारे हर साँस से मोहब्बत है।

    तुमने बहुत पी ली है, और अगर तुमने एक और पैग पी लिया तो क़ै करने लगोगे।

    नहीं मम्मी नहीं। तुम्हारी क़सम नहीं, क़ै नहीं करूंगा, मैं कभी क़ै नहीं करूंगा, सिर्फ़ एक पैग और, लो तुम भी एक पैग और, जब तुम शराब पी लेती हो तो तुम काफ़ी हसीन हो जाती हो, तुम्हारी धँसी हुई आँखें चमक उठती हैं और तुम्हारे मुरझाए हुए चेहरे पर रानाई सी जाती है, मम्मी तुम्हारी।

    एंग्लो इंडियन।

    क्या तुम्हें हिंदुस्तानियों से नफ़रत है?

    बिल्कुल नहीं मेरे बेटे, मुझे सिर्फ़ उस शख़्स से नफ़रत है जो कमीना हो और वो तुम्हारा दोस्त जो अपने आपको शायर कहता है, वो तो बहुत ही कमीना है।

    कौन सा शायर मम्मी?

    वो काला सियाह सा, जिसकी आँखें अंदर धँसी हुई हैं, जो निहायत ही बदसूरत और बेहया है, उसका दिल भी उसके रंग की तरह सियाह है, मुझे उससे बेइंतहा नफ़रत है।

    किस बात पर झगड़ा हुआ था?

    एक दिन कहने लगा, मुझे लड़की ला दो, कमबख़्त अपनी सूरत नहीं देखता और जिस अंदाज़ से उसने मुझे ये अल्फ़ाज़ कहे वो अंदाज़ मैं कभी नहीं भूल सकती। उसके कहने का मतलब ये था कि मैं उसे लड़कियाँ लाकर क्यों नहीं देती, मैं उसे शराब क्यों नहीं पिलाती, भला मैं उस काले सियाह आदमी को किस तरह अपने घर में बुलाऊँ, मैं बदसूरती से नफ़रत करती हूँ, मैं बदसूरत आदमी के साथ शराब नहीं पी सकती। क्या हुआ कि मैं लड़कियाँ सप्लाई करती हूँ, ये मेरा पेशा है, क्या तुम मुझसे नफ़रत करने लगोगे, उसी वजह से...!

    नहीं मम्मी, बल्कि मैं उस बेबाकपन की वजह से तुमसे मोहब्बत करता हूँ। मुझे मालूम है कि तुम लड़कियाँ सप्लाई करती हो, मुझे इससे क्या ग़रज़, लोग इससे बुरे काम करते हैं और फिर मैं तुमसे क्यों नफ़रत करूं, मैं कौन से अच्छे काम करता हूँ।

    नहीं मेरे बच्चे, तुम कमीने नहीं हो। तुम दयानतदार हो, तुम मेरा मज़ाक़ नहीं उड़ाते।

    मम्मी नो मोर टॉक, मेरे क़रीब आओ। आओ, आओ, आओ ना।

    डोंट बी सिल्ली माई सन...मुझे उस शायर से नफ़रत है, मैं चाहती हूँ कि उसे मारूँ, पीटूँ, उसकी मुस्कुराहट को नोच डालूँ, वो मुझे दलाला समझता है, काफ़िर कहीं का... वो मुझे नफ़रत की निगाह से देखता है, क्योंकि तवाइफ़ हूँ, या तवाइफ़ रह चुकी हूँ, जैसे जिस्म उसके बाप का है।

    चीखो मत मम्मी।

    मुझे कहने दो...

    मम्मी मेरे क़रीब आओ और क़रीब...नाराज़ हो, यू आर स्वीट।

    वो मुझे समझता क्या है, उसने मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाया, वो मुझे नफ़रत की निगाह से क्यों देखता है शाला कहीं का, क्या तुम ये जानते हो कि यह पेशा मुझे क्यों इख़्तियार करना पड़ा?

    क्योंकि तुम ये पेशा इख़्तियार करना चाहती थीं।

    बको मत, शायद तुमने ज़रूरत से ज़्यादा पी ली है, मैं तवाइफ़ कभी नहीं बनना चाहती थी।

    तुम्हें तवाइफ़ कौन कहता है?

    तुम्हारा शायर।

    शायर नहीं गधा है, उसे कुछ पता नहीं... वो बेवक़ूफ़ है।

    अब आओ मेरे क़रीब, अब तो ख़ुश हो ना, वो लड़की बहुत अच्छी थी।

    चंद दिन हुए तुमने मेरे पास भेजी थी, वो बहुत अच्छी थी, कमबख़्त रूपये बहुत माँगती थी, डेढ़ सौ रूपये।

    किसी शरीफ़ घराने की लड़की थी।

    तो फिर क्या हुआ... मुझे इसकी शराफ़त से कोई सरोकार नहीं। कहने लगी, तुम मेरे रसीले होंटों से रस चुरा सकते हो, बस-बस ज़्यादा कुछ नहीं, तुम्हें इस्मत और कुँवारेपन की इज़्ज़त करनी चाहिए, रात भीगती रही और मैं उसके शादाब लबों से ताज़गी हासिल करता रहा, शब भर हमने एक जान होकर एक दूसरे के पहलू पहलू जवानी के ख़्वाब देखे, मैं हुस्न-ओ-जवानी और इस्मत की इज़्ज़त करना जानता हूँ, ख़ूब जानता हूँ।

    हूँ... और तुम्हारा शायर...काला और सियाह... चिमनी के धुएं की तरह सियाह, आँखों में आवारगी... और सीने में बिच्छू का डंक, मुझपर हँसता था, कमीना, मुझे तवाइफ़ समझ कर नफ़रत करता था जानते हो मेरे बेटे, मेरी उम्र चौदह साल की थी, जब मेरी माँ हैज़ा से मर गई, उस वक़्त मै जवान थी। बहुत से गोरे सिपाही हमारे घर आते थे, माँ के मरने के बाद मैं अकेली रह गई बिल्कुल अकेली, तन्हा और एक रात एक गोरे ने मुझे पिला दी और उस रात हुस्न फ़रोशी की तरफ़ मेरा पहला क़दम उठा। कहने लगा मैं तुम्हारे साथ शादी करूंगा, मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ लूसी, उन दिनों लोग मुझे लूसी पुकारते थे, लूसी नादान थी, जवान थी, गोरे की बातों में आगई और जब सुबह हुई तो गोरा कहीं भाग गया था और लूसी फिर अकेली थी, मेरे बच्चे तुम इस वक़्त कहाँ थे, तुम्हारी क़सम मैं उस वक़्त जवान थी, जिस्म में पत्थर की सख़्ती थी, इतनी सख़्ती कि चुटकी लो तो पोरें छिल जाएं, जिस्म में सूरज की सी गर्मी थी, मालूम नहीं तुम उस वक़्त कहाँ थे? और अब, अब तो बूढ़ी हो चुकी हूँ।

    मम्मी यू आर ग्रेट स्वीट औरत।

    मैं उन हालात में क्या करती, क्या राहिबा बन सकती थी, क्या मैं किसी हस्पताल में नर्स भरती हो सकती भी? बिल्कुल नहीं, मुझे दोनों पेशों से नफ़रत है। जब जिस्म में आग हो, गोश्त में पत्थर की सी सख़्ती हो, उस वक़्त औरत राहिबा नहीं बन सकती, नर्स नहीं बन सकती और फिर मैंने ये पेशा इख़्तियार कर लिया। लोग जौक़ दर जौक़ आने लगे, मैंने हमेशा उन लोगों से मोहब्बत की जो मुझे पसंद आए, मैंने यूँही अपने आपको ग़ैरों के हवाले नहीं किया बल्कि आहिस्ता-आहिस्ता सोच समझ कर मैंने इस जिस्म का इस्तेमाल किया है। देख लो, इस उम्र में भी लोग मेरे पास आते हैं, मेरे जिस्म को ख़रीदना चाहते हैं, लेकिन मैं उनको घर से बाहर निकाल देती हूँ, सिर्फ़ जवान लड़कों के साथ बैठती हूँ, क्यों मेरे बच्चे?

    तुम इसे पेशा कहती हो?

    हाँ मेरे बच्चे तुम अपना दिमाग़ बेचते हो, मैं अपना जिस्म बेचती हूँ, तिजारत करने वाले 420 करके महल तैयार कराते हैं और मैं जिस्म की नुमाइश करके अपना पेट भरती हूँ, ये देखो ये छोटा सा घर इसी जिस्म की बदौलत तैयार हुआ है और अगर तुम्हें उन तिजारत करने वालों से नफ़रत नहीं तो मुझसे नहीं होनी चाहिए।

    मम्मी शट अप, यू आर स्प्वाइलिंग माई मूड। क्या मैंने तुम्हें नहीं बताया कि मैं बम्बई गया था और फिर उस लड़की के घर भी गया था, लड़की निहायत ही बदतमीज़ थी, तुम्हारी क़सम, उससे बिल्कुल नफ़रत होगई, उसने मुझसे इस तरह बातें कीं, जैसे वो एक आला नस्ल से तअल्लुक़ रखती है और मैं महज़ एक हक़ीर इंसान था।

    मुझे उस काले हिंदुस्तानी से नफ़रत है।

    और मैं उस लड़की के घर से निकल कर बाज़ार में चला गया, मुझे मालूम था कि बाज़ार में एक हंगामा बरपा है, दुकानें बंद हो रही थीं, लोग जौक़ दर जौक़ इकट्ठे होरहे थे कि इंडियन नेवी ने बग़ावत करदी है, बेस जहाज़ों पर क़ब्ज़ा कर लिया, हिंदुस्तानी नेवी ज़िंदा बाद, हिंदुस्तानी फ़ौज ज़िंदा बाद। कहो मम्मी,जय हिंद।

    नहीं कहती।

    तुम्हें कहना ही पड़ेगा, नहीं तो मैं तुम्हारा सर फोड़ दूंगा।

    मुझे जय हिंद का नारा पसंद नहीं।

    लेकिन मम्मी इस नारे ने हिंदुस्तान को फिर से बेदार किया, मम्मी एक ग्लास और म,मी मेरे क़रीब आओ, मेरे पास आओ, मैं तुमसे बातें करना चाहता हूँ, राज़ की बातें, अरे तुम बम्बई नहीं गईं, अगर तुमने आज़ादी की जंग देखी होती, तो हिंदुस्तानी की बहादुरी की क़ाइल हो जातीं, कहो इंडियन नेवी ज़िंदा बाद।

    हिंदुस्तानी बुज़दिल हैं और रूपये के लालच में आकर दूसरों के लिए लड़ते हैं।

    नहीं मम्मी अब यक़ीन नहीं करता, जो कुछ देख कर मैं आया हूँ, उसके बाद मैं निहायत फ़ख़्र के साथ कह सकता हूँ कि हम आज़ादी के लिए लड़ सकते हैं, मर सकते हैं, मम्मी छोटे-छोटे बच्चे जय हिंद का नारा लगा रहे थे। बच्चों के हाथ में पत्थर, लाठियाँ थीं, लेकिन गोरों के हाथों में बंदूक़ें थीं, मशीन गनें थीं, मुक़ाबला बहुत सख़्त था, बच्चों ने, बूढ़ों ने औरतों ने गोलियाँ सीने पर खाईं, और जय हिंद का नारा बुलंद करते रहे। काँग्रेस और मुस्लिम के झंडे इकठठे लहरा रहे थे और अगर उन लोगों के पास भी बंदूक़ें होतीं... तो...

    माई गॉड डोंट टॉक रॉट, माई सन...

    कौन?

    वही तुम्हारा शायर...मैं उसे जान से मार दूँगी।

    मम्मी शट अप, कहो जय हिंद...

    नहीं कहती।

    सिर्फ़ Navy ही नहीं, एअर फ़ोर्स, मुसल्लह फ़ौज, यानी हिंदुस्तान की आज़ादी की जंग में पहली बार सब हिंदुस्तानियों ने मिल कर आज़ादी का नारा बुलंद किया, अब तूफ़ान को कोई नहीं रोक सकता, बंदूक़ें, गोलियाँ, हम हिंदुस्तानियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। ये ज़ुल्म और ये तशद्दुद हमारे आहनी अज़्म को मुतज़लज़ल नहीं कर सकता, अब हिंदुस्तान आज़ाद होकर रहेगा और जय हिंद का नारा सिर्फ़ बम्बई से बुलंद नहीं हुआ कराची से कोलम्बो तक, दिल्ली से लेकर पिशावर तक हर शहर, हर गाँव से नारा बुलंद हो रहा है, अब हमारा वतन आज़ाद हो कर रहेगा।

    तुमने बहुत पी ली है।

    जब मैं ज़्यादा पी लेता हूँ, तो निहायत साफ़ और वाज़ेह बातें करता हूँ, निहायत खरी-खरी बातें, मम्मी मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, मुझे तुम्हारी क़ौम से नफ़रत है।

    वो क्यों?

    वो इस मुल्क को अपना वतन नहीं समझते। वो इस तरह बातें करते हैं जैसे वो लंदन से रहे हैं, उनकी हरकात, आदात सब अंग्रेज़ों की तरह हैं। मुझे उनके रहने सहने पर कोई एतराज़ नहीं, लेकिन उनके चेहरे मोहरे से तमकनत बरसती है, ग़ुरूर का बेबाक साया, हुकूमत का रोब। मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं, हिंदुस्तानी होकर हिंदुस्तानियों से नफ़रत करना कहाँ की अक़्लमंदी है, लेकिन एक बात के लिए उन्हें पसंद भी करता हूँ, वो निहायत साफ़ और सुथरे रहते हैं, अगर वो इस मुल्क को अपना वतन समझने लगें।

    मुझे इस पॉलिटिक्स से नफ़रत है, परमात्मा के लिए चुप हो जाओ!

    क्या तुम्हें ख़ुदा पर यक़ीन नहीं?

    बिल्कुल नहीं।

    फिर भी तुम ज़िंदा हो।

    क्या मज़हब से नफ़रत है?

    शायद इसीलिए तुम ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम रहती हो। ममै! उन्हें बातों की वजह से में तुमको पसंद करता हूँ, मम्मी तुम इस दफ़ा बम्बई नहीं गईं, हिंदुस्तानियों में अब नई तड़प चुकी है, वो एक नये अज़्म को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, अब इस मुल्क को कोई ग़ुलाम नहीं रख सकता, मम्मी जय हिंद कहो, नहीं तो सर फोड़ दूंगा।

    मैं नहीं कहती।

    मम्मी तुम्हें कहना ही पड़ेगा, कहो... वो एक शराब की ख़ाली बोतल उठाता है और बोतल मारने के लिए हाथ बढ़ाता है।

    कहो जय हिंद।

    जय हिंद माई सन।

    अच्छा ये बोतल रख दो, मम्मी सूरज की तरफ़ देखो, उस आग की तरफ़ देखो जो सूरज उगल रहा है। ये सारा कुर्रा अर्ज़ उस सुर्ख़ रौशनी से जगमगा उठा है,ये लांबे- लांबे दरख़्त, ये आसमान, ये शफ़क़, ये पहाड़, ये दरिया, सब उस रौशनी से जगमगा उठे हैं, कितना हसीन मंज़र है, ये एक नई सुबह है, नई लय, नया गीत, ये आग अब रुक नहीं सकती और फैलेगी, इस सिरे से लेकर उस सिरे तक।

    देखते नहीं सूरज ग़ुरूब हो रहा है।

    और दूसरा उभर रहा है, एक तहज़ीब मिट रही है और दूसरी बन रही है, एक क़ौम मिट रही है, दूसरी बन रही है, क्या तुम्हें ये दिखाई नहीं देता।

    तुमने बहुत पी ली है माई सन।

    मम्मी यू आर ग्रेट। मैं जानता हूँ, तुम मेरे क़रीब हो, आओ, मेरे क़रीब आओ, इस ठंडे लम्स से मुझे सेराब करदो, जब कभी तुम्हारे जिस्म से हम कनार होता हूँ तो ऐसा मालूम होता है जैसे किसी गर्म चश्मे में नहा रहा हूँ, मम्मी यू आर वाक़ई ग्रेट, आओ, मेरे पास आओ।

    मैं तुम्हारे पास हूँ।

    लेकिन इस वक़्त के धारे को कोई नहीं मिटा सकता, ये वक़्त जो मेरे और तुम्हारे दरमियान है, ये वक़्त की ख़लीज, ये बुढ़ापे की लहर जो मुझे तुमसे जुदा करती है।

    इसीलिए मैं तुम्हारी मम्मी हूँ, यू आर माई सन, लेकिन जब शराब पी लेती हूँ, तो तुम मेरे बेटे नहीं बल्कि सिर्फ़ एक मर्द और मैं सिर्फ़ एक औरत और मेरी होलनाक निगाहें, अँधेरे में तुम्हारा मज़बूत और तवाना जिस्म ढूंढती हैं, इधर उधर चमगादड़ों की तरह भटकती हैं और रास्ता ढूंढती हैं, और फिर रिश्ता ख़त्म हो जाता है और तुम मेरी आग़ोश में होते हो माई सन, योर मम्मी इज़ ग्रेट दस रेस्पेक्ट।

    मम्मी शराब का एक और पैग लाओ, नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगा, मैं मरना चाहता हूँ उन लोगों के साथ, उन बच्चों के साथ, उन औरतों के साथ जो इस जंग-ए- आज़ादी में मारे गए हैं, मैं वाक़ई मरना चाहता हूँ, लेकिन मैं बुज़दिल हूँ, मैंने सिर्फ़ जय हिंद का नारे सुना और वापस आगया। लोग मर रहे थे, आज़ादी के लिए, मुल्क के लिए और मैं दिन भर शराब पीता रहा...और तुम्हारे जिस्म की गर्मी से लज़्ज़त हासिल करता रहा, मम्मी तुम मेरे लिए अफ़्यून हो, एक नशा हो, मैं मरना चाहता हूँ, मैं वाक़ई मरना चाहता हूँ, अपनी क़ौम के लिए, अपने हिंदुस्तान के लिए।

    ये लो शराब का पैग...

    शुक्रिया।

    (शराब पी कर)

    मम्मी यू आर ग्रेट, ग्रेट।

    शट अप माई सन, मत बोलो ख़ामोश हो जाओ, अंधेरा बढ़ रहा है, शराब जिस्म की नस-नस में समा रही है, मुझे कुछ दिखाई नहीं देता, हर तरफ़ अंधेरा और कुछ नहीं, आओ, आओ, मेरे पास आओ। तुम्हारे बालों को चूम लूँ, तुम्हारे जवान सुडौल बाज़ुओं को देख लूँ, अब मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ बिल्कुल बूढ़ी, लेकिन उमंगें अभी तक जवान हैं... बूढ़े जिस्म में ख़ून आहिस्ता-आहिस्ता दौड़ रहा है, लेकिन ये शराब, ये शराब, ये तेज़ तुंद शराब, कुछ नहीं आज़ादी और ग़ुलामी सब कुछ इसमें ग़र्क़ हो जाता है। मुझे नज़दीक आने दो, यू आर स्वीट, यू आर वंडरफ़ुल माई सन माई डार्लिंग।

    मम्मी कहो जय हिंद।

    जय हिंद माई सन।

    (दोनों लड़खड़ाते हुए एक दूसरे से लिपट जाते हैं और अंधेरा दोनों को अपनी आग़ोश में ले लेता है।)

    स्रोत:

    Mahender Nath Ke Behtareen Afsane (Pg. 127)

    • लेखक: महेनद्र नाथ
      • प्रकाशक: उपेन्द्र नाथ
      • प्रकाशन वर्ष: 2004

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