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मोमबत्ती के आँसू

सआदत हसन मंटो

मोमबत्ती के आँसू

सआदत हसन मंटो

MORE BYसआदत हसन मंटो

    स्टोरीलाइन

    यह एक ग़ुर्बत की ज़िंदगी गुज़ारती वेश्या की कहानी है। उसके घर में अंधेरा है। ताक़ में रखी मोमबत्ती मोम को पिघलाती हुई जल रही है। उसकी छोटी बच्ची मोतियों का हार माँगती है तो वह फ़र्श पर जमे मोम को धागे में पिरो कर माला बनाकर उसके गले में पहना देती है। रात में उसका ग्राहक आता है। उससे अलग होने पर वह थक जाती है, तभी उसे अपनी बच्ची का ध्यान आता है और वह उसके छोटे पलंग के पास जाकर उसे अपनी बाँहों में भर लेती है।

    ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी।

    मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने पर ज़िद करने और रोने लगी तो उसकी माँ ने मोमबत्ती के उन जमे हुए आँसूओं को एक कच्चे धागे में पिरो कर उसका हार बना दिया। नन्ही लाजो उस हार को पहन कर ख़ुश हो गई और तालियां बजाती हुई बाहर चली गई।

    रात आई... मैल भरे ताक़चे में नई मोमबत्ती रौशन हुई और उसकी कानी कानी आँख उस कमरे की तारीकी देख कर एक लम्हे के लिए हैरत के बाइ’स चमक उठी। मगर थोड़ी देर के बाद जब वो इस माहौल की आदी हो गई तो उसने ख़ामोशी से टकटकी बांध कर अपने गिर्द-ओ-पेश को देखना शुरू कर दिया।

    नन्ही लाजो एक छोटी सी खटिया पर पड़ी सो रही थी और ख़्वाब में अपनी सहेली बिन्दू से लड़ रही थी कि वो अपनी गुड़िया का ब्याह उसके गुड्डे से कभी नहीं करेगी, इसलिए कि वो बदसूरत है।

    लाजो की माँ खिड़की के साथ लगी, ख़ामोश और नीम रौशन सड़क पर फैली हुई कीचड़ को हसरत भरी निगाहों से देख रही थी, सामने भटयारे की बंद दुकान के बाहर चबूतरे पर अँगीठी में से कोयलों की चिनगारियां ज़िद्दी बच्चों की तरह मचल मचल कर नीचे गिर रही थीं।

    घंटाघर ने ग़ुनूदगी में बारह बजाये, बारह की आख़िरी पुकार दिसंबर की सर्द रात में थोड़ी देर तक काँपती रही और फिर ख़ामोशी का लिहाफ़ ओढ़ कर सो गई। लाजो की माँ के कानों में नींद का बड़ा सुहाना पैग़ाम गुनगुनाया। मगर उसकी अंतड़ियां उसके दिमाग़ तक कोई और बात पहुंचा चुकी थीं।

    दफ़अ’तन सर्द हवा के झोंके से घुंघरूओं की मद्धम झनझनाहट उसके कानों तक पहुंची। उसने ये आवाज़ अच्छी तरह सुनने के लिए कानों में अपनी समाअ’त की ताक़त भरनी शुरू कर दी।

    घुंघरू रात की ख़ामोशी में मरते हुए आदमी के हलक़ में अटके हुए सांस की तरह बजना शुरू हो गए, लाजो की माँ इतमिनान से बैठ गई। घोड़े की थकी हुई हिनहिनाहट ने रात की ख़ामोशी में इर्तआ’श पैदा कर दिया और एक ताँगा लालटेन के खंबे की बग़ल में खड़ा हुआ। ताँगे वाला नीचे उतरा। घोड़े की पीठ पर थपकी दे कर उसने खिड़की की तरफ़ देखा जिसकी चिक़ उठी हुई थी और तख़्त पर एक धुँदला साया भी फैला था।

    अपने खुरदरे कम्बल को जिस्म के गिर्द अच्छी तरह लपेट कर तांगे वाले ने अपनी जेब में हाथ डाला। साढ़े तीन रुपये का किरयाना था। उसमें उसने एक रुपया चार आने अपने पास रख लिये और बाक़ी पैसे तांगे की अगली नशिस्त का गद्दा उठा कर उसके नीचे छुपा दिए। ये काम करने के बाद वो कोठे की सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ा।

    लाजो की माँ चन्दू सुनियारी उठी और दरवाज़ा खोल दिया।

    माधव तांगे वाला अंदर दाख़िल हुआ और दरवाज़े की ज़ंजीर चढ़ा कर उसने चन्दू सुनियारी को अपने साथ लिपटा लिया।

    “भगवान जानता है, मुझे तुझसे कितना प्रेम है… अगर जवानी में तुझसे मुलाक़ात होती तो यारों का ताँगा घोड़ा ज़रूर बिकता!” ये कह कर उसने एक रुपया उसकी हथेली में दबा दिया।

    चन्दू सुनियारी ने पूछा, “बस?”

    “ये ले... और।” माधव ने चांदी की चवन्नी उसकी दूसरी हथेली पर जमा दी, “तेरी जान की क़सम! बस यही कुछ था मेरे पास!”

    रात की सर्दी में घोड़ा बाज़ार में खड़ा हिनहिनाता रहा। लालटेन का खंबा वैसे ही ऊँघता रहा।

    सामने टूटे हुए पलंग पर माधव बेहोश लेटा था। उसकी बग़ल में चन्दू सुनियारी आँखें खोले पड़ी थी और पिघलते हुए मोम के इन क़तरों को देख रही थी जो गीले फ़र्श पर गिर कर छोटे छोटे दानों की सूरत में जम रहे थे। वो एका एकी दीवानावार उठी और लाजो की खटिया के पास बैठ गई। नन्ही लाजो के सीने पर मोम के दाने धड़क रहे थे। चन्दू सुनियारी की धुँदली आँखों को ऐसा मालूम हुआ कि मोमबत्ती के इन जमे हुए क़तरों में उसकी नन्ही लाजो की जवानी के आँसू छुप कर बैठ गए हैं। उसका काँपता हुआ हाथ बढ़ा और लाजो के गले से वो हार जुदा हो गया।

    पिघले हुए मोम पर से मोमबत्ती का जलता हुआ धागा फिसल कर नीचे फ़र्श पर गिरा और उसकी आग़ोश में सो गया... कमरे में ख़ामोशी के इलावा अंधेरा भी छा गया।

    स्रोत:

    منٹو کےافسانے

      • प्रकाशन वर्ष: 1940

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