Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

टेलीग्राम

जोगिन्दर पॉल

टेलीग्राम

जोगिन्दर पॉल

MORE BYजोगिन्दर पॉल

    स्टोरीलाइन

    शहर में तन्हा ज़िंदगी गुज़ारते एक क्लर्क की कहानी है, जो कम तनख़्वाह में गुज़ारा करते हुए साल में एक बार ही अपनी बीवी से गाँव मिलने जाता है। उसकी ख़्वाहिश है कि वह एक अच्छा-सा कमरा किराये पर ले ले और बीवी को भी शहर में ले आए। अचानक उसे एक टेलीग्राम मिलता है जिसमें लिखा होता है कि उसके नाम दो कमरों का सरकारी क्वार्टर एलाट हो गया है। कुछ ही देर बाद ही उसे दूसरा टेलीग्राम मिलता है, जिसमें उसकी बीवी की ख़ुदकुशी की सूचना लिखी होती है।

    पिछले बारह बरस से श्याम बाबू तार घर में काम कर रहा है, लेकिन अभी तक ये बात उसकी समझ में नहीं आई कि ये बे-हिसाब अलफ़ाज़ बर्क़ी तारों में अपनी अपनी पोज़ीशन में जूँ के तूँ क्योंकर भागते रहते हैं, कभी बदहवास हो कर टकरा क्यों नहीं जाते? टकरा जाएँ तो लाखों करोड़ों टकराते ही दम तोड़ दें और बाक़ी के लाखों करोड़ों की क़तारें टूट जाएँ तो वो अपनी समझ बूझ से नए रिश्तों में मुंसलिक हो कर कुछ इस हालत में रिसीविंग स्टेशनों पर पहुँचीं, “बेटे ने माँ को जन्म दिया है स्टॉप मुबारकबाद!” या “चोरों ने क़ानून को गिरफ़्तार कर लिया है।” या “अफ़सोस कि ज़िंदा बच्चा पैदा हुआ है।” या हाँ इसमें क्या मुज़ाइक़ा है? श्याम बाबू मशीन की तरह बेलाग हो कर मैकानिकी अंदाज़ में बर्क़ी पैग़ामात के कोड को रोमन हुरूफ़ में लिखता जा रहा है लेकिन इस मशीन के अंदर ही अंदर उन बौखलाई हुई इन्सानी सोचों का तालाब भर रहा है क्या मुज़ाइक़ा है? जैसी ज़िंदगी, वैसे पैग़ाम “करता हूँ स्टॉप किशवर” उसने किसी किशवर के तार के कोड के आख़िरी अलफ़ाज़ काग़ज़ पर उतार लिए हैं और वो इस बात से बरामद होते हुए एक एक लफ़्ज़ को क़लम-बंद करता जाए। सोचना समझना उसका काम है जिसके नाम पैग़ाम मौसूल हुआ जब धीरज को कोई पुकारे तो आवाज़ को तो सारा हुजूम सुन लेता है लेकिन सिर्फ़ धीरज ही मुड़ कर देखता है कि क्या है ख़िलाफ़-ए-मामूल मालूम क्या सोच कर श्याम बाबू तार का मज़मून पढ़ने लगा है शादी रोक लो स्टॉप। मैं तुमसे बे-इंतिहा मोहब्बत करता हूँ स्टॉप किशवर। वो हंस पड़ा है वो दूसरे हंगामे में। बेचारा थोड़ी सी मोहब्बत कर के बाक़ी मोहब्बत करना भूल गया होगा, मगर अब कोई राह नहीं सूझ रही है तो बाक़ी सब कुछ छोड़ छाड़ कर मोहब्बत ही मोहब्बत किए जाने का एलान कर रहा है। मोहब्बत ही मोहब्बत करने से क्या होता है बेबी? तलाक़, डार्लिंग! तलाक़ हो जाए मगर मोहब्बत क़ायम रहे।

    और, श्याम बाबू एक और तार का ये मज़मून पढ़ने लगा है आपके बाप की मौत की ख़बर पा कर मुझे बेहद दुख हुआ है श्याम बाबू फिर हंस दिया है। मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ, अपने बाप की मौत पर मुझे इतना अफ़सोस हुआ है कि लफ़्ज़ों में बयान नहीं कर सकता। तो क्योंकर रहे हो भाई?” ताकि मेरा रोना निकल आए। आइए, आप भी मेरे साथ रोइये।

    समझ में नहीं रहा है कि बंदरों को चुप कैसे कराया जाए। सब के सब रोते ही चले जा रहे हैं।

    अरे भाई, क्यों रो रहे हो?

    मुझे क्या पता? उससे पूछो।

    तुम ही बता दो भाई, क्यों रो रहे हो?

    मुझे क्या पता? उससे पूछो।

    तुम? मुझे क्या पता?

    तुम तो आख़िरी बंदर हो भाई बताओ, क्यों रो रहे हो? बस यूँ ही सोचा कि ज़रा फ़ुर्सत मयस्सर आई है तो एक-बार जी जान से रो लूँ। मेरा एक काम कीजिए। आपको ज़हमत तो होगी, मगर मेरे रोने को किसी तगड़ी सी अलम्नाक ख़बर में पेश करने के लिए एक अर्जेंट टेलीग्राम का ड्राफ़्ट तैयार कर दीजिए। लिखिए मेरी माँ मर गई है ठहरिए, वो तो ग़रीब उसी रोज़ मर गई थी जब बेवा हुई थी। उस दिन से हमने उसकी तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया लिखिए! मेरा भाई मर गया है हाँ, यही लिखिए मगर नहीं, सबको मालूम है कि हमारी आपस में बिल्कुल नहीं बनती मेरी बहन नहीं, वो तो पहले ही मर चुकी है, मैं अरे हाँ! यही लिखिए, मैं ही मर गया हूँ। मुझे सबको फ़ौरी तौर पर ख़बर करना है कि मैं ही मर गया हूँ।

    मुबारकबाद पेश करता हूँ, स्टॉप श्याम बाबू के ख़ुदकार क़लम ने जल्दी जल्दी लिखा और वो अपनी तहरीर से बे-ख़बर सा सोच रहा है, मुझे देख कर कौन कह सकता है कि मैं ज़िंदा हूँ। मैं ज़िंदा हूँ तो ये मेज़ भी ज़िंदा है जिस पर झुक कर मैं अपना काम किए जा रहा हूँ। चूँकि ये मेज़ खाए पिए सोए बग़ैर ज़िंदा रह सकती है। इसलिए इसकी ड्यूटी ये है कि हमारे दफ़्तर के इस कमरे में चौबीस घंटे ख़िदमत बजा लाने के लिए अपनी चारों टांगों पर खड़ी रहे और मुझे चूँकि अपनी मशीन की टुक-टुक को भी चलाए रखना होता है इसलिए मेरे लिए ये आर्डर है कि आठ घंटे यहाँ डट कर काम करो और बाक़ी वक़्त में अपनी मशीन की देख-भाल के सारे धंदे संभालो हाँ, यही तो है। मैं जीता कहाँ हूँ? दफ़्तर में तो सिर्फ़ प्रोडक्शन का काम है। मशीन चलना बंद हो जाए तो प्रोडक्शन पर बुरा असर पड़ेगा। इसलिए सारे दफ़्तरी टाइम में तो मशीन यहाँ चलती रहती है और उसके बाद मुझे हर-रोज़ सारी मशीन को खोल कर साफ़ करना पड़ता है, उसकी ऑयलिंग ग्रिसिंग करना पड़ती है, उसके एक एक ढीले पुर्जे़ को कसना पड़ता है। और ये सारा काम भी मुझे अकेले ही अंजाम देना होता है।

    पिछले साढे़ सात बरस से, जब से श्याम बाबू की शादी हुई है, उसकी बीवी वहीं अपने माँ-बाप के गाँव में उनही के साथ रह रही है। शादी के मौक़े पर वो उसकी डोली उठवा कर गाँव से बाहर तो ले आया, लेकिन फिर जब समझ में आया कि उसे कहाँ ले जाए तो डोली का मोंसा वापस गाँव की तरफ़ मुड़वा लिया ये तुमने बहुत अच्छा किया बेटा उसकी सास ने कहा था कि एक बार हमारी बेटी को गाँव से बाहर ले गए। कम से कम रस्म तो पूरी हो गई। अब चाहो तो बे-शक सारी उम्र यहीं रहे। ये घर भी तो उसी का है लेकिन उसका कोई अपना घर क्यों नहीं जहाँ उसे वो ले आता तो उसमें बोई हुई इन्सानियत की आबयारी होती रहती।

    शुरू शुरू में तो श्याम बाबू की बेचैनी का ये आलम था कि सोते में भी बीवी के गाँव का रुख किए होता, तुम घबराओ नहीं सन्या स्नेह दति। मैं दिन रात किराए पर कोई अच्छा सा कमरा लेने की मुहिम में जुटा हुआ हूँ। जैसे ही कोई मिल गया, तुम्हें उसी दम यहाँ ले आऊँगा मगर बुरा हो इस बड़े शहर का, जो अपने छोटे दिल में एक के ऊपर एक कई कमरे बनाए हुए है मगर इतनी ऊंचाई पर रिहाइश के किराए के ख़याल से उसे यहाँ रहने की बजाए यहाँ से लुढ़क कर ख़ुदकुशी की सूझती है। पूरे साढे़ सात बरस इसी तरह गुज़र गए हैं। वो मियाँ और बीवी साढे़ पाँच सौ मील के फ़ासले पर वहाँ। श्याम बाबू तीन सौ पैंसठ दिन तक अपनी बीस दिन की अर्नड लीव का इंतिज़ार करता रहता और वक़्त आने पर गाड़ियों, बसों और तांगों को बदल बदल कर वो गोया अपने दो पैरों से सरपट भागते हुए वहाँ जा पहुंचता और उसकी ख़्वाहिश इतनी शदीद होती कि अपनी तैयार बैठी हुई बीवी पर वो बे-इख़्तियार किसी दरिंदे की तरह टूट पड़ता। एक दो तीन साल तक तो वो हर साल गया, लेकिन चौथे साल ऐन छुट्टी के दिनों में वो बीमार हो गया, फिर पाँचवें साल जो जाना हुआ तो उसके बाद ढाई साल में एक-बार भी नहीं जा सका। जो पैसे वहाँ जाने में ज़ाए होंगे। उनमें से आधे भी मनी आर्डर करा दूँगा तो बीसियों काम निकाल लेगी हाँ, उसका एक दो साला लड़का भी है जिसके बारे में उसकी बीवी ने उसे लिखा था कि वो उसे अपनी पाँचवें साल की छुट्टी पर उसकी कोख में डाल आया था वो लेकिन श्याम बाबू अपना हिसाब किताब कर के इस नतीजे पर पहुँचा था कि उसका बेटा उस का बेटा नहीं। शायद इसी वजह से ढाई साल के इस अर्से में वो एक-बार भी उसके पास नहीं गया था लेकिन इस सिलसिले में उसने बीवी को कभी कुछ नहीं लिखा जो है सो ठीक है वह भी क्या करे? और मैं भी क्या करूँ? कभी अच्छे दिन गए तो सब अपने आप ठीक हो जाएगा।

    उसे और उसके हमारे बच्चे को उसका हुआ तो हम दोनों का ही हुआ यहीं अपने पास ले आऊँगा और फिर हम चैन से रहेंगे, बड़े चैन से रहेंगे।

    उसके दफ़्तर का कोई साथी उसका कंधा झटक रहा है। मशीन में शायद कोई नुक़्स पैदा हो गया है और वो रुकी पड़ी है श्याम बाबू!

    आँ! श्याम बाबू ने हड़बड़ा कर अपनी आँखें खोल ली हैं।

    तबीअत ख़राब है तो घर चले जाओ।

    कौन सा घर? नहीं ठीक हूँ, यूँ ही ज़रा ऊँघने लगा था टुक-टुक टुक-टुक! मशीन फिर चलने लगी है। तुम्हारे लिए पानी मंगवाऊँ?

    अरे भाई, कह दिया न, ठीक हूँ।

    उसके साथी ने तअज्जुब से उसके काम पर झुके हुए सर की तरफ़ देखा है और अपने काम में उलझ गया है।

    श्याम बाबू को अपना जी अचानक भरा भरा सा लगने लगा है। आम तौर पर तो यही होता है कि उसे अपनी ख़ुशी की ख़बर होती है उदासी की। उसे बस जो भी होता है बे-ख़बरी में ही होता है। उसे मालूम ही नहीं होता कि वो क्या कर रहा है और यूँही सब कुछ बख़ूबी होता चला जाता है। वो बे-ख़बर सा अपने आप दफ़्तर में पहुंचता है और उसी हालत में सारे दिन क़लम चला चला कर अपने ठिकाने पर लौट आता है और फिर दूसरे दिन सुबह को ऐन वैसे का वैसा ड्यूटी पर बैठता है। यानी मालूम ही नहीं होता कि वो कौन है, क्यों है, क्या है? कोई हो तो मालूम भी हो उस दिन तो हद हो गई; वो यहाँ अपनी सीट पर बैठा है और उसका बॉस यहाँ उसके क़रीब ही खड़ा पूछ रहा है, भई, श्याम बाबू आज कहाँ है? श्याम बाबू श्याम बाबू! श्याम बाबू यक़ीनी तौर पर उसकी आवाज़ सुन रहा है, मगर सुन रहा है तो फ़ौरन, जवाब क्यों नहीं हैं देता। सुसर! ऐसे भूले-भटके चेहरे शायद हमारी आँखों में ठहरने की बजाय रूहों में लुढ़क जाते हैं। उनसे मुख़ातिब होना हो तो अपने ही अंदर हो लो, अपनी ही थोड़ी से जान से उन्हें ज़िंदा करलो, वर्ना ये तो जैसे हैं वैसे ही हैं।

    गोश्त को रगों में ख़ून दौड़ने की इत्तिला मिलती रहे तो ये ज़िंदा रहता है, वर्ना बे-ख़बरी में मिट्टी हो जाता है। जब श्याम बाबू की अपनी ज़िंदगी बे-पैग़ाम है तो उसे कैसे महसूस हो कि टेलीग्रामों के टेक्स्ट बर्क़ी कोड की ओट में खिलखिला कर हंस रहे हैं, या धाड़ें मार मार कर रो रहे हैं, या तजस्सुस से अकड़े पड़े हैं। सूखी मिट्टी के दिल पर आप कुछ भी लिख दीजिए, उसे इससे क्या? श्याम बाबू को इससे क्या, कि कोई किसे क्या पैग़ाम भेज रहा है? उसकी क़िस्मत में तो किसी का पैग़ाम नहीं, मोहब्बत का या नफ़रत, ख़ुशी या ग़म का उसे क्या? टेलीग्रामों के गर्म गर्म टेक्स्ट का कोड उसके ठंडे क़लम सूली से लटक कर सपाट सी सूरत लिए काग़ज़ पर ढेर होता रहता है ये लो, अलफ़ाज़ तो निरे अलफ़ाज़ हैं, बस अलफ़ाज़ हैं, अलफ़ाज़ क्यों हँसें या रोएँगे? उनको पढ़के हँसो, रोओ, या जो भी करो, तुम ही करो ये लो!

    लेकिन इस वक़्त ये है कि श्याम बाबू को अपना जी यकबारगी बहुत भरा भरा लगने लगा है। सोचों का तालाब शायद भर भर के उसके दिल तक पहुंचा है और वो अनजाने में तैरने लगा है और सूखी मिट्टी में जान पड़ने लगी है।

    स्टॉप मैं बिदेस से लौट आया हूँ, स्टॉप और ऐन उस वक़्त साहब के चपरासी ने उसकी आँखों के नीचे हेड ऑफ़िस का एक लेटर रख दिया है। उसने लेटर पर नज़र डाली है और फिर चौंक कर ख़ुशी से कांपते हुए उसे दोबारा पढ़ने लगा है। उसे सरकारी तौर पर इत्तिला दी गई है कि तुम्हारे नाम दो कमरों का क्वार्टर मंज़ूर हो गया है!

    केदार बाबू जमीलकशन! इधर देखो दोस्तो। देखो, मेरा क्या लेटर आया है?

    क्या क्या है?

    मेरा क्वार्टर मंज़ूर हो गया है!

    तो क्या हुआ? हाएँ, क्या कहा क्वार्टर मंज़ूर हो गया है? हाँ!

    बहुत अच्छा! बहुत अच्छा! सब के लिए चाय हो जाए श्याम बाबू!

    अरे चाय ही क्या, कुछ उधार दे सकते हो तो जो चाहो मंगवा लो।

    हाँ, तुम फ़िक्र करो। मैं सारा बंदोबस्त किए देता हूँ, ये तो बहुत ही अच्छा हो गया श्याम बाबू! रामू इधर आओ रामू, जाओ होटल वाले को बुला लाओ जाओ अब भाबी को कब ला रहे हो श्याम बाबू?

    आज छुट्टी की दरख़्वास्त दे कर ही जाऊँगा केदार बाबू! श्याम बाबू तसव्वुर में अपने क्वार्टर में बैठा खाना खा रहा है और उसके कंधों पर उसका लड़का खेल रहा है क्या नाम है उसका? देखो न, दिमाग़ पर-ज़ोर डाले बग़ैर अपने इकलौते बच्चे का अपना ही तो है नाम भी याद नहीं आता। कोई बात नहीं शकर और दूध खुलते मिलते ही गाढे और मीठे हो जाते हैं, अरी सुन रही हो भली लोग? अगली चपाती कब भेजोगी? दफ़्तर के लिए देर हो रही है।

    लो, श्याम बाबू, होटल वाला तो गया है बस एक एक चाट, एक एक गुलाब जामुन और क्या? एक एक समोसा चलेगा श्याम बाबू? लिखो हमारा आर्डर भाई परनानन्द!

    श्याम बाबू को पता ही नहीं चला है कि दफ़्तर में बाक़ी सारा वक़्त कैसे बीत गया है। वहाँ से उठने से पहले उसने सब साथियों से वादा किया है कि कल सवेरे वो उन सबको उनकी भाबी की तस्वीर दिखाएगा।

    इतनी भोली है कि डरता हूँ इस शहर में कैसे रहेगी।

    डरो मत श्याम बाबू। भाबी को लाना है तो अब शेर बब्बर बन जाओ।

    दफ़्तर से निकल कर तेज़ तेज़-क़दम उठाए हुए श्याम बाबू चौराहे पर गया है और पान और सिगरेट लेने के लिए रुक गया है और फिर तंबाकू वाले पान का लुआब हलक़ से उतारते हुए नथनों से सिगरेट का धुआँ बिखेरते हुए हल्की हल्की सर्दी में हिद्दत महसूस करते वो बड़े इत्मिनान से अपने रिहाइश के अड्डे की तरफ़ हो लिया एक छोटी सी खोली जिसमें मुश्किल से एक चारपाई आती है। अभी पिछले ही महीने ख़ान सेठ ने उसे धमकी दी थी। भाड़े के दस रुपये बढ़ाओ, नहीं तो चलते बनो हाँ!

    चूहे के उस बिल का किराया पहले ही पच्चास रुपये वसूल करते हो ख़ान सेठ। अपने ख़ुदा से डरो!

    लेकिन ख़ान सेठ ने अपने ख़ुदा को डराने के लिए एक भयानक क़हक़हा लगाया बिल्ली शरीफ़ होती बाबू, तो बोलो, क्या हो जाता? साठ रुपये, नहीं तो ख़ाली करो हाँ!

    इसी महीने ख़ाली कर दूँगा और सेठ से कहूँगा, लो संभालो अपनी खोली ख़ान सेठ। तुम्हारी क़ब्र की पूरे साइज़ की है लो! नहीं झगड़े वगड़े का क्या फ़ायदा? चुपके से उसकी खोली उसके हवाले कर के अपनी राह लूँगा।

    बस स्टॉप गया है और बस भी खड़ी है, लेकिन बहुत भरी हुई है। श्याम बाबू ने फ़ैसला कर लिया है कि वो पैदल ही जाएगा। यहाँ से थोड़ा ही फ़ासिला तो है उसका सिगरेट जल जल कर उंगलियों तक पहुँचा है, लेकिन अभी उसकी ख़्वाहिश नहीं मिटी है। उसने हाथ का टुकड़ा फेंक कर एक और सिगरेट सुलगा लिया है, सावित्री को मेरी सिगरेट पीना बिल्कुल पसंद नहीं पैसे भी जलाते हो और फेफड़े भी। इससे तो अच्छा है मेरा ही एक सिरा जला कर दूसरे को होंटों में दबा लो और धुआँ छोड़ते जाओ! मेरा मज़ा क्या सिगरेट से कम है? अरी भली लोग, एक तुम्हारा ही मज़ा तो है। सिगरेट उगरेट की लत को गोली मारो आओ! उसने ख़याल ही ख़याल में बीवी को सीने से लगा लिया है और मुख़ालिफ़ सिम्त से आती हुई एक औरत से टकरा गया है, गोया उस की सावित्री ने उससे अलग होने के लिए अपने आप को झटका हो अरे! उसने अंधेपन में अपना हाथ उस औरत की तरफ़ फैला दिया है ईडियट! वो औरत ग़ुस्से से फुंकारती हुई आगे बढ़ गई है और श्याम बाबू शर्मिंदा हो जाने के बावजूद ख़ुश ख़ुश है और औरत की पीठ की तरफ़ मुंहा लटका कर उसने बआवाज़ बुलंद कहा है। आई एम सॉरी मैडम लेकिन उस औरत की फुंकार फिर उसके बंद कानों के बाहर टकराई है। ईडियट!

    श्याम बाबू अपने ज़ेह्न को झाड़ रहा है और उड़ती हुई गर्द में उसकी बीवी ज़ोर ज़ोर से हंस रही है और टकराव पराई औरतों से! एक मैं हूँ जो बिला रोक-टोक सारी दराज़ दस्तियाँ सह लेती हूँ। मैं और की तरफ़ ज़रा नज़र उठा कर देखूँ किसी और की तरफ़ ज़रा नज़र उठा कर तो देखूँ किसी और की तरफ़ देखने की मुझे ज़रूरत ही क्या है? मेरे लिए तो बस जो भी हो तुम हो, श्याम बाबू ने अपने आप को डाँट कर कहा है नहीं, तुमने अपनी बीवी के माथे पर ख़्वाह मख़्वाह कलंक का टीका लगा रखा है। तुम्हारा बच्चा तुम्हारा ही है और अगर मान भी लें कि वो तुम्हारा नहीं, तो उसमें सावित्री का क्या दोष? उसका सारा साल तुम्हारी अर्नड लीव के दस बीस रोज़ का तो नहीं चल सब ठीक है, मेरा बच्चा मेरा ही है हमारे नेटो की आँखें उसकी तरह छोटी छोटी हैं। माथा मुझ पर गया है, मगर नाक में भी कैसा बाप हूँ कि दो साल ऊपर का हो लिया है मगर मैं ने अभी तक उसे एक-बार भी नहीं देखा। पिछले साल मुझे एक चक्कर काट आना चाहिए था، आज छुट्टी की दरख़्वास्त देना भी भूल गया हूँ। अब कल पहला काम यही करूँगा और इस हफ़्ते के आख़िर में यहाँ से निकल जाऊँगा, सावित्री को चिट्ठी भी लिखूँगा और अचानक उसके सामने जा खड़ा होऊँगा, सावित्री! और वो आँखें मल मल कर मेरी तरफ़ देखती रह जाएगी, सावित्री वो रो देगी ये मुझे किसकी आवाज़ सुनाई दी है। हाय अब तो उठते बैठते तुम्हारी ही सूरत दिखाई देती है नेटो के बापू। अब तो जाओ! मैं आगे बढ़कर उसे गले लगा लूँगा और वो मेरे बाज़ुओं में बेहोश हो जाएगी। सावित्री! सात्री! अपनी खोली के सामने पहुँच कर उसने बे-इख़्तियार अपनी बीवी का नाम पुकारा है, लेकिन वहाँ उसके तार घर के रामू ने आगे बढ़ कर उसे जवाब दिया है बाबूजी?

    अरे रामू, तुम! कैसे आए? श्याम बाबू अपने हवास दुरुस्त कर रहा है। बाबू जी! रामू की आवाज़ भारी है और वो बोलते हुए ताम्मुल बरत रहा है।

    इतने उखड़े उखड़े क्यों हो? बोलो न!

    आपका तार लाया हूँ।

    मेरा तार? हाँ बाबूजी, ये तार आपके हाथ से ही लिखा हुआ है, मगर आपका ध्यान ही नहीं गया कि आपका है। तार का लिफ़ाफ़ा एक तरफ़ से खुला है लेकिन श्याम बाबू उसे दूसरी तरफ़ से चाक कर रहा है। डिसपैच वाले किशन सिंह को भी ख़याल आया श्याम बाबू, कि ये तार आपका है।

    श्याम बाबू ने तार का फ़ार्म खोल कर दोनों हाथों से अपनी आँखों के सामने फिट कर लिया है।

    मुझे भी आधा रास्ता तय कर के अचानक ख़याल आया बाबूजी, अरे, ये तार तो अपने बाबूजी का है मैं उसे पढ़ चुका हूँ। बहुत अफ़सोस है कि सावित्री ने ख़ुदकुशी कर ली है।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए