माँ पर दोहे

शायरी में महबूब माँ

भी है। माँ से मोहब्बत का ये पाक जज़्बा जितने पुर-असर तरीक़े से ग़ज़लों में बरता गया इतना किसी और सिन्फ़ में नहीं। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो माँ को मौज़ू बनाते हैं। माँ के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस की जानसारी को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इस से मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। उन अशआर को पढ़िए और माँ से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शएर कीजिए।

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार

दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार

निदा फ़ाज़ली

भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए

जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए

अख़्तर नज़्मी

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

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