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ख़ुदा परस्ती का नुसख़ा

ख़्वाजा हसन निज़ामी

ख़ुदा परस्ती का नुसख़ा

ख़्वाजा हसन निज़ामी

MORE BYख़्वाजा हसन निज़ामी

    डाक्टरों ने ईजाद किया, गर्मी-गर्मी को मारती, ज़हर-ज़हर उतारता है। सुना नहीं चेचक ताऊ'न के टीके उन ही बीमारियों के ज़हर से बनाए जाते हैं। फिर यह ख़ुदा परस्त लोग नया इलाज क्यों नहीं करते। मैं ईसाइयों, आर्यों और मुसलमानों को अपनी ईजाद-ए-जदीद से आगाह करना चाहता हूँ ताकि वो लोगों को ख़ुदा परस्ती की तंदुरुस्ती और रूह की दुरुस्ती अ'ता करे और ख़ुदा की भूल से बंदों को बचाए जो आ'फ़ियत शिकन मर्ज़ है।

    क़ुरान में ख़ुदा ने फ़रमाया है, जब बंदे पर मुसीबत आती है या वो बीमार होता है तो खुलूस-ए-क़ल्ब से ख़ुदा को याद करता है और जब तंदुरुस्त होता है तो ऐसा बेख़बर हो जाता है। गोया कभी ख़ुदा से काम ही पड़ा था।

    इंजील तौरात में भी इंसान की इस फ़ितरी ख़सलत का ज़िक्र आया है। पस मंतक़ियाना नतीजा यह निकला की आदमी को बीमार डालना और मुसीबत में मुब्तला करना चाहिए ताकि वो ख़ुदा परस्ती करे और ख़ुदा से ग़ाफ़िल हो।

    इस हालत में पादरी साहिबान को लाज़िम है की शिफ़ाख़ाने बन्द कर दें और ऐसी दवाएं तक़सीम करे जिनसे इंसान बीमार ज़्यादा हों। बीमारियां बढ़ेंगी तो ख़ुदा परस्ती की तरक़्की करेगी।

    हिन्दुओं और मुसलमानों को भी लाज़िम है की वो कौंसिलों में तजवीज़ पेश करें और शहरों क़स्बों से सरकारी अस्पताल उठवा दें क्योंकि उन आ'म दवाखानों ने हमको अज़ हद तंदुरुस्त कर दिया है और इस तंदुरुस्ती से हमारी ईमान दुरुस्ती में फ़र्क़ रहा है।

    फ़ितरत बदलती रहती है तो हमको भी बदलता रहना चाहिए, क्या ज़रूरत है कि हम वाइ’ज़ कहकर अपना दिमाग ख़राब करें और किताबे हिदायत ख़ुदा परस्ती के लिए तस्नीफ़ करके अपना रूपया खोए।

    बहुत आसान इलाज है, निहायत मज़ेदार नुस्ख़ा है। खुली हुई बात है जिसमें गौर खौज़ कि ज़रूरत ही नहीं। मगर मैं कि इस नुस्खे का मुजिद हूँ, अज़ राह-ए-हिफ़्ज़ मातक़द्दुम अ'र्ज़ करना ज़रूरी समझता हूँ कि मुझ पर इस नुस्ख़ा का तजुर्बा किया जाए। मैं परेशनी बीमारी में ख़ुदा को इतना याद नहीं करता जितना तंदुरुस्ती में झुक-झुक कर उसकी इबादत बजा लता हूँ और कहता हूँ,

    मौला इस भूल के आ'लमगीर ज़माने में मेरी याद क़बूल कर, मैं तुझको क्योंकर भूलूँ कि तेरे एहसान और तेरी ने'मते मुझको सर से लेकर पांव तक दबाए डालती है और तू मुझको इस क़दर याद आता है कि ज़िंदगी के मज़े में किरकिराहट होने लगती है। हर घड़ी ख़याल यही कहता है कि ज़िंदगी के तमाम शय हेंच है, को कुछ है। ज़िंदा ख़ुदा कि दीद शुनीद है।

    चूंकि मैं इस कुल्लिया से मुस्तस्ना हूँ, लिहाज़ा मुझको बीमार डालने कि कोशिश कि जाए। वाजिब जानकर अ'र्ज़ किया।

    स्रोत:

    Chutkiyan Aur Gudgudiyan (Pg. 28-29)

    • लेखक: ख़्वाजा हसन निज़ामी
      • प्रकाशक: अननोन आर्गेनाइजेशन

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