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असग़र गोंडवी के 10 बेहतरीन शेर

प्रख्यात पूर्व-आधुनिक शायर, अपने सूफ़ियाना लहजे के लिए प्रसिद्ध।

चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से

अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए

असग़र गोंडवी

ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा

रुख़ पर तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा

असग़र गोंडवी

एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है

लुत्फ़ पीने में नहीं है बल्कि खो जाने में है

असग़र गोंडवी

अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं

तेरी सूरत में है क्या जो मेरी सूरत में नहीं

असग़र गोंडवी

यूँ मुस्कुराए जान सी कलियों में पड़ गई

यूँ लब-कुशा हुए कि गुलिस्ताँ बना दिया

असग़र गोंडवी

जीना भी गया मुझे मरना भी गया

पहचानने लगा हूँ तुम्हारी नज़र को मैं

असग़र गोंडवी

इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी

नीची नज़रों में क्या नहीं होता

असग़र गोंडवी

सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़्साना-ए-हस्ती

कुछ ख़्वाब है कुछ अस्ल है कुछ तर्ज़-ए-अदा है

असग़र गोंडवी

रिंद जो ज़र्फ़ उठा लें वही साग़र बन जाए

जिस जगह बैठ के पी लें वही मय-ख़ाना बने

असग़र गोंडवी

'असग़र' ग़ज़ल में चाहिए वो मौज-ए-ज़िंदगी

जो हुस्न है बुतों में जो मस्ती शराब में

असग़र गोंडवी

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