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राजेन्द्र मनचंदा बानी के 15 बेहतरीन शेर

आधुनिक उर्दू ग़ज़ल की सबसे शक्तिशाली आवाज़ों में शामिल

किसी के लौटने की जब सदा सुनी तो खुला

कि मेरे साथ कोई और भी सफ़र में था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तू कोई ग़म है तो दिल में जगह बना अपनी

तू इक सदा है तो एहसास की कमाँ से निकल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस का

ज़रा से लम्स ने रौशन किया बदन उस का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

क़दम ज़मीं पे थे राह हम बदलते क्या

हवा बंधी थी यहाँ पीठ पर सँभलते क्या

राजेन्द्र मनचंदा बानी

जाने वो कौन था और किस को सदा देता था

उस से बिछड़ा है कोई इतना पता देता था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो एक अक्स कि पल भर नज़र में ठहरा था

तमाम उम्र का अब सिलसिला है मेरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मैं चुप खड़ा था तअल्लुक़ में इख़्तिसार जो था

उसी ने बात बनाई वो होशियार जो था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं

कि हम परिंदे मक़ामात-ए-गुम-शुदा के हैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी

सितारे छत पे रक्खे थे शिकन बिस्तर पे रक्खी थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था

कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ज़रा छुआ था कि बस पेड़ गिरा मुझ पर

कहाँ ख़बर थी कि अंदर से खोखला है बहुत

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

अगला पाँव नए पानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अजीब तजरबा था भीड़ से गुज़रने का

उसे बहाना मिला मुझ से बात करने का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं

शफ़क़ शजर तस्वीर बनाने वाला मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आए

याद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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