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बकुल देव

1980 | जयपुर, भारत

हिन्दुस्तान की नई पीढ़ी के शायर

हिन्दुस्तान की नई पीढ़ी के शायर

बकुल देव

ग़ज़ल 21

अशआर 20

हवस शामिल है थोड़ी सी दुआ में

अभी इस लौ में हल्का सा धुआँ है

शाम उतरी है फिर अहाते में

जिस्म पर रौशनी के घाव लिए

वही आँसू वही माज़ी के क़िस्से

जिसे देखो कटे को काटता है

समुंदर है कोई आँखों में शायद

किनारों पर चमकते हैं गुहर से

तअ'ल्लुक़ तर्क तो कर लें सभी से

भले लगते हैं कुछ नुक़सान लेकिन

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