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बशीर बद्र के क़िस्से
कुंवर की दो आँखें
नैनीताल क्लब में मुशायरा हो रहा था और निज़ामत कर रहे थे जनाब कँवर महिन्द्र सिंह बेदी सहर। मुशायरे के इख्तिताम पर जब बशीर बद्र और वसीम बरेलवी पढ़ने के लिए बाक़ी रह गए तो उन्होंने अपनी मुहब्बत का इज़हार किया, “ये मेरी दोनों आँखें हैं। मैं किस को पहले बुलाऊँ
ऐबदार की क़ुर्बानी
झरिया (धनबाद) बिहार में जनाब कँवर महिन्द्र सिंह बेदी की निज़ामत में मुशायरा हो रहा था। मरहूम नाज़िर ख़य्यामी ने अपने मज़ाहिया कलाम और उससे भी बेहतर गुफ़्तगू से मुशायरा लूट लिया। उसके बाद कँवर साहब ख़ुद खड़े हुए और फ़रमाया, “हज़रात नाज़िर ने अपने फ़न से दिलों
आज़मगढ़ के सामईन, बेकल, वसीम और बशीर की परेशानी
आज़मगढ़ के एक क़स्बा में सामईन का ये मूड हो गया कि पुरानी ग़ज़ल और पुराना कलाम नहीं सुनेंगे। बेकल उत्साही और वसीम बरेलवी जितनी ग़ज़लें उन्हें याद थीं सब का पहला मिसरा सुनाने लगे और मजमे से आवाज़ आती रही कि सुनी हुई है। आख़िरकार उन लोगों ने मोहलत मांगी कि