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हसन नईम

1927 - 1991 | पटना, भारत

हसन नईम

ग़ज़ल 56

नज़्म 5

 

अशआर 29

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे

ग़म से बिखरा पाएमाल हुआ

मैं तो ग़म से ही बे-मिसाल हुआ

गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने दिया

कोई एहसान ज़माने का उठाया ही नहीं

जो भी कहना है कहो साफ़ शिकायत ही सही

इन इशारात-ओ-किनायात से जी डरता है

सबा मैं भी था आशुफ़्ता-सरों में यकता

पूछना दिल्ली की गलियों से मिरा नाम कभी

पुस्तकें 7

 

ऑडियो 19

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है

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