जमाल एहसानी के शेर
न अजनबी है कोई और न आश्ना कोई
अकेले-पन की भी होती है इंतिहा कोई
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उसी मक़ाम पे कल मुझ को देख कर तन्हा
बहुत उदास हुए फूल बेचने वाले
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हारने वालों ने इस रुख़ से भी सोचा होगा
सर कटाना है तो हथियार न डाले जाएँ
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सुब्ह आता हूँ यहाँ और शाम हो जाने के बा'द
लौट जाता हूँ मैं घर नाकाम हो जाने के बा'द
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ख़ुद जिसे मेहनत मशक़्क़त से बनाता हूँ 'जमाल'
छोड़ देता हूँ वो रस्ता आम हो जाने के बा'द
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तिरा फ़िराक़ तो रिज़्क़-ए-हलाल है मुझ को
ये फल पराए शजर से उतारा थोड़ी है
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मेरे होने से न होना है मिरा
आग जलने से धुआँ आबाद है
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टैग : आग
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बिछड़ते वक़्त ढलकता न गर इन आँखों से
इस एक अश्क का क्या क्या मलाल रह जाता
'जमाल' हर शहर से है प्यारा वो शहर मुझ को
जहाँ से देखा था पहली बार आसमान मैं ने
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ख़त्म होने को हैं अश्कों के ज़ख़ीरे भी 'जमाल'
रोए कब तक कोई इस शहर की वीरानी पर
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टैग : वीरानी
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किसी भी वक़्त बदल सकता है लम्हा कोई
इस क़दर ख़ुश भी न हो मेरी परेशानी पर
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कुछ और वुस'अतें दरकार हैं मोहब्बत को
विसाल-ओ-हिज्र पे दार-ओ-मदार मुश्किल है
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क्या उस से मुलाक़ात का इम्काँ भी नहीं अब
क्यूँ इन दिनों मैली तिरी पोशाक बहुत है
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हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में
पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था
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टैग : ग़म
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बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था
वो हो रहा है यहाँ जो न होने वाला था
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और अब ये चाहता हूँ कोई ग़म बटाए मिरा
मैं अपनी मिट्टी कभी आप ढोने वाला था
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तिरे न आने से दिल भी नहीं दुखा शायद
वगरना क्या मैं सर-ए-शाम सोने वाला था
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जो आसमाँ की बुलंदी को छूने वाला था
वही मिनारा ज़मीं पर धड़ाम से आया
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टैग : शोहरत
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हम ऐसे बे-हुनरों में है जो सलीक़ा-ए-ज़ीस्त
तिरे दयार में पल-भर क़याम से आया
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क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया
वो आया भी तो किसी और काम से आया
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टैग : सुकून
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मैं हूँ कि मुझ को दीदा-ए-बीना का रोग है
और लोग हैं कि काम उन्हें अपने काम से
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जो मेरे ज़िक्र पर अब क़हक़हे लगाता है
बिछड़ते वक़्त कोई हाल देखता उस का
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टैग : जुदाई
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दिन गुज़रते जा रहे हैं और हुजूम-ए-ख़ुश-गुमाँ
मुंतज़िर बैठा है आब ओ ख़ाक से बिछड़ा हुआ
न रंज-ए-हिजरत था और न शौक़-ए-सफ़र था दिल में
सब अपने अपने गुनाह का बोझ ढो रहे थे
चराग़ सामने वाले मकान में भी न था
ये सानेहा मिरे वहम-ओ-गुमान में भी न था
जो पहले रोज़ से दो आँगनों में था हाइल
वो फ़ासला तो ज़मीन आसमान में भी न था
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टैग : फ़ासला
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ये ग़म नहीं है कि हम दोनों एक हो न सके
ये रंज है कि कोई दरमियान में भी न था
वो भी मिलने नई पोशाक बदल कर आया
मैं जो कल पैरहन-ए-ख़ाक बदल कर आया
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कभी ये आँखें ख़ुद भी उड़ा करती थीं पतंग के साथ
दूर दरीचे से होते थे इशारे हैरत वाले
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चारों जानिब रची हुई है अश्कों की बू-बास
इस रस्ते से गुज़रे होंगे क़ाफ़िले हिजरत वाले
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टैग : जुदाई
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जो दिल के ताक़ में तू ने चराग़ रक्खा था
न पूछ मैं ने उसे किस तरह सितारा किया
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टैग : चराग़
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ये जो लड़ता-झगड़ता हूँ सब से
बच रहा हूँ क़ुबूल-ए-आम से मैं
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क्या कहूँ ऊबने लगा हूँ 'जमाल'
एक ही जैसे सुब्ह ओ शाम से मैं
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कौन है इस रिम-झिम के पीछे छुपा हुआ
ये आँसू सारे के सारे किस के हैं
चराग़ बुझते चले जा रहे हैं सिलसिला-वार
मैं ख़ुद को देख रहा हूँ फ़साना होते हुए
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टैग : चराग़
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मिरा कमाल कि मैं इस फ़ज़ा में ज़िंदा हूँ
दु'आ न मिलते हुए और हवा न होते हुए
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है
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सूरत-ए-दिल बड़े शहरों में रह-ए-यक-तर्फ़ा
जाने वालों को बहुत याद किया करती है
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वो इंतिक़ाम की आतिश थी मेरे सीने में
मिला न कोई तो ख़ुद को पछाड़ आया हूँ
तेरे ख़याल में कभी इस तरह खो गए
तेरा ख़याल भी हमें अक्सर नहीं रहा
दो जीवन ताराज हुए तब पूरी हुई बात
कैसा फूल खिला है और कैसी वीरानी में
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टैग : वीरानी
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थकन बहुत थी मगर साया-ए-शजर में 'जमाल'
मैं बैठता तो मिरा हम-सफ़र चला जाता
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टैग : शजर
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वो जिस मुंडेर पे छोड़ आया अपनी आँखें मैं
चराग़ होता तो लौ भूल कर चला जाता
किसी के होने न होने के बारे में अक्सर
अकेले-पन में बड़े ध्यान जाया करते हैं
ऐ ज़मीं-ज़ाद तिरी रिफ़अतें छूने के लिए
तुझ तलक मैं कई अफ़्लाक बदल कर आया
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सुनते हैं उस ने ढूँड लिया और कोई घर
अब तक जो आँख थी तिरे दर पर लगी हुई
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मनहूस एक शक्ल है जिस से नहीं फ़रार
परछाईं की तरह से बराबर लगी हुई
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टैग : परेशानी
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इक आदमी से तर्क-ए-मरासिम के बा'द अब
क्या उस गली से कोई गुज़रना भी छोड़ दे
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दुनिया पसंद आने लगी दिल को अब बहुत
समझो कि अब ये बाग़ भी मुरझाने वाला है