मोहम्मद यूसुफ़ पापा के शेर
दुश्मनों की दुश्मनी मेरे लिए आसान थी
ख़र्च आया दोस्तों की मेज़बानी में बहुत
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ज़ुल्फ़ के पेच में लटके हुए शाएर का वजूद
थक चुका होगा उसे मिल के उतारो यारो
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अपने दम से है ज़माने में घोटालों का वजूद
हम जहाँ होंगे घोटाले ही घोटाले होंगे
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