जफ़ा शायरी
मोहब्बत के क़िस्से और महबूब के क़सीदे उर्दू शायरी में जितने आ’म हैं उतनी ही शोहरत महबूब की ज़ुल्म करने की आदत की भी है। आशिक़ दिल के हाथों मजबूर वह दीवाना होता है जो तमामतर जफ़ाओं और यातनाओं के बावजूद मोहब्बत से किनारा करने को तैयार नहीं। इन जफ़ाओं का तिलिस्म शायरों के सर चढ़ कर बोलता रहा है। जफ़ा शायरी के इसी रंग रूप से आशनाई कराने के लिए पेश है यह इन्तिख़ाबः
अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना
After she had slain me then from torture she forswore
Alas! the one now quickly shamed was not so before
ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की
दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ
she was so annoyed she did not even torment me
in doing so denied what was due to enmity
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
सीना किस का है मिरी जान जिगर किस का है
जब भी वालिद की जफ़ा याद आई
अपने दादा की ख़ता याद आई
लुत्फ़ आने लगा जफ़ाओं में
वो कहीं मेहरबाँ न हो जाए
I've started to enjoy her tortures by and by
I hope she doesn't now decide to
पहले रग रग से मिरी ख़ून निचोड़ा उस ने
अब ये कहता है कि रंगत ही मिरी पीली है
तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
हम वफ़ाओं से तौबा करते हैं
जितनी वो मिरे हाल पे करते हैं जफ़ाएँ
आता है मुझे उन की मोहब्बत का यक़ीं और
More the cruelty from her that I receive
more in her affection for me do I believe
ज़ालिम जफ़ा जो चाहे सो कर मुझ पे तू वले
पछतावे फिर तू आप ही ऐसा न कर कहीं
O cruel one any torture, on me implement
just refrain from actions which you may repent
उन की जफ़ाओं पर भी वफ़ा का हुआ गुमाँ
अपनी वफ़ाओं को भी फ़रामोश कर दिया