- पुस्तक सूची 185710
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य2000
जीवन शैली22 औषधि926 आंदोलन297 नॉवेल / उपन्यास4844 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी13
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर66
- दीवान1461
- दोहा50
- महा-काव्य106
- व्याख्या200
- गीत62
- ग़ज़ल1185
- हाइकु12
- हम्द46
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1600
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात689
- माहिया19
- काव्य संग्रह5045
- मर्सिया384
- मसनवी844
- मुसद्दस58
- नात566
- नज़्म1250
- अन्य76
- पहेली16
- क़सीदा189
- क़व्वाली17
- क़ित'अ65
- रुबाई300
- मुख़म्मस16
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम34
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा20
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त26
संपूर्ण
परिचय
ई-पुस्तक488
लेख54
कहानी4
उद्धरण24
साक्षात्कार10
शेर1
ग़ज़ल20
नज़्म17
ऑडियो 1
वीडियो6
गेलरी 22
रुबाई9
ब्लॉग2
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी के उद्धरण
उर्दू एक छोटी ज़बान है और उम्र भी इसकी बहुत कम है। इस के बोलने वालों की कोई सियासी क़ुव्वत भी नहीं है। जैसी कि अरबी बोलने वालों की है। लेकिन फिर भी उर्दू इस वक़्त दुनिया की चंद एक ज़बानों में से एक है जो हक़ीक़ी तौर पर बैन-उल-अक़वामी हैं।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
तन्क़ीद का मक़सद मालूमात में इज़ाफ़ा करना नहीं बल्कि इल्म में इज़ाफ़ा करना है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अदब में ये कोई शर्त नहीं है कि महसूस की हुई बातें ही लिखी जाएं। अदब तो ज़बान का मामला है। ज़बान में जो इज़हार मुम्किन है वो अदब का इज़हार हो सकता है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
दुनिया की निगाहों में तो मेरी पहचान ऐसे नक़्क़ाद की है जिसने अदब के हर मैदान में तन्क़ीद का हक़ अदा किया है लेकिन जिसके ख़्यालात ने लोगों को गुमराह भी किया है। फ़र्क़ सिर्फ ये है कि दुनिया जिसे गुमराही क़रार देती है मैं उसे राह-ए-मुस्तक़ीम समझता हूँ।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जब तालीम के नाम पर ख़ाँदगी की तौसीअ होने लगती है तो मेयार में ज़बरदस्त इन्हितात पैदा होता है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मैं तख़लीक़ को तन्क़ीद से अफ़ज़ल मानता हूँ। मैं ये भी जानता हूँ कि तन्क़ीदी तहरीर की ज़िंदगी कई बातों पर मुनहसिर होती है। उनमें सबसे बड़ी बात ये है कि तन्क़ीद अपनी जगह पर जामिद होती है। इस के मअ्नी ज़माने के साथ बदलते नहीं लेकिन तख़लीक़ की नौईयत हुर की है, ज़माने के साथ उस के मअनी और माअनवियत दोनों बदल सकते हैं, लिहाज़ा तन्क़ीद एक मह्दूद कारगुज़ारी है, चाहे इस में कितनी ही चमक दमक क्यों ना हो और चाहे उस के बारे में कितने ही जलसे क्यों ना मुनअक़िद हों और कितने ही बुलंद बाँग दावे क्यों ना किए जाँए!
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
बे-तकल्लुफ़ हो जाने के बाद में बहुत कम पर्दे का क़ाएल हूँ लेकिन बे-तकल्लुफ़ होने में मुझे ख़ासी देर लगती है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जो लोग कहते हैं शम्स-उर-रहमान फ़ारूक़ी समाजी अनासिर और समाजी शऊर के अनासिर को अदब से ख़ारिज करना चाहते हैं उन लोगों ने दर असल मुझे पढ़ा ही नहीं है। क्योंकि मैं तो हमेशा से ये कहता चला आ रहा हूँ कि मैं तो अदब की ख़ुद-मुख़्तारी और अदीब की आज़ादी का क़ायल हूँ। जब मैं अदीब की आज़ादी का क़ायल हूँ तो इसलिए ये कैसे कह सकता हूँ कि तुम ये ना लिखो और और वो लिखो।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
शेअर इस लिए बरतर है कि वो ज़बान का बेहतर, ज़्यादा हस्सास और नोकीला इस्तिमाल करता है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अदीब को किसी सियासी या ग़ैर अदबी नज़रिये का पाबंद नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसी पाबंदी इज़हार की आज़ादी की राहें रोक देती हैं।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अदब ज़िंदगी का इज़हार करता है और ज़िंदगी का एक अमल है। इसके लिए ये ऐलान करना ज़रूरी नहीं कि अदब का ताल्लुक़ ज़िंदगी से है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अदब के बारे में बुनियादी सवालात उठाना और मंतिक़ी रब्त के साथ उनका जवाब देना नक़्क़ाद का पहला काम होना चाहिए।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
फ़नपारे की कोई ताबीर हत्मी और आख़िरी नहीं होती, लिहाज़ा कोई तन्क़ीद हरफ़-ए-आख़िर नहीं हो सकती।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अपने हम-अस्रों में मुझे वही लोग ज़्यादा अच्छे लगे जिनके लिए अदब साज़िशों का खेल नहीं बल्कि ज़िंदगी से भी मावरा एक हक़ीक़त है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
तरक़्क़ी पसंदों ने ग़ज़ल को सामराजी निज़ाम की यादगार कह कर इस लिए बिरादरी से बाहर करने की कोशिश की कि उन्हें ख़ौफ़ था कि अगर इस सख़्त-जान लौंडिया को घर में घुसने दिया गया तो अच्छा ना होगा।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
शेअर के लिए ये ज़रूरी नहीं कि वो ज़िंदगी से अपने ताल्लुक़ या अपने इन्सान-पन को साबित करने के लिए सड़क पर जाकर झंडा उठाए और नारा लगाए।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रस्म-उल-ख़त वो चीज़ होती है जो आसानी या किसी और वजह से मुरव्विज होने की बिना पर अडौप्ट कर लिया जाता है। ज़बान की जान इस में नहीं होती।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
फ़िक्शन निगार की हैसियत से मेरा अपना तजुर्बा भी यही है कि मैं अपने किरदार या वक़ूऐ को जैसा बनाना चाहता हूँ, हमेशा वैसा बनता नहीं है। मेरे सामने सामे'अ भी नहीं है जिसके दबाओ के तहत मैं किरदार और वाक़ेए' को आज़ाद ना होने दूँ। इस तरह मुतज़ाद सी सूरत-ए-हाल बनती है कि मैं अपने फ़िक्शन का ख़ालिक़ हूँ भी और नहीं भी हूँ...
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अगर मेरी कोई नस्ल है भी और वो 'मुस्लिम' या 'अरब' नस्ल है, तो वो मेरे हिन्दुस्तानी अक़ाइद और महसूसात के रंगों में रंगी हुई है। हिन्दुस्तान के बग़ैर और हिन्दुस्तान के बाहर मेरा कोई वजूद नहीं।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य2000
-