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तारिक़ छतारी की कहानियाँ
बाग़ का दरवाज़ा
गर्मियों की तारों भरी रात ने घर के बड़े आँगन को शबनम के छिड़काओ से ठंडा कर दिया था। जैसे ही दादी जान ने तस्बीह तकिये के नीचे रखी नौरोज़ कूद कर उनके पलंग पर जा पहुँचा। "दादी जान, जब सभी शहज़ादे बाग़ की रखवाली में नाकाम हो गए तो छोटे शहज़ादे ने बादशाह
लकीर
आज सूरज ग़ुरूब होने से पहले बादलों भरे आसमान पर अजब तरह का रंग छा गया था। यह रंग सुर्ख़ भी था और ज़र्द भी। इन दोनों रंगों ने आसमान को दरमियान से तक़सीम कर दिया था। जिस मक़ाम पर दोनों रंग मिल रहे थे, वहाँ एक गहरी लकीर दिखाई देती थी। ध्यान से देखने पर महसूस
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बाल-साहित्य1990
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