aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
यह किताब सैयद ख़ालिद क़ादरी के उर्दू मज़ामीन का एक मजमूआ है जो गुज़श्ता छब्बीस तीस बरसों के दौरान क़लमबंद किए गए और मुख्तलिफ़ अदबी जरीदों में शाया होते रहे। यह मजमूआ उर्दू अदब और तनक़ीद के मुख्तलिफ़ पहलुओं पर मुश्तमिल है, जिसमें ग़ालिब, इकबाल, मंटो और क़ुर्रतुलऐन हैदर जैसे अदबी शख़्सियात के साथ-साथ मग़रिबी अदब के अहम मौज़ूआत का तजिया भी शामिल है। मुरत्तब रहमत यूसुफ़ज़ई ने मुसन्निफ़ के मुनफ़रिद अंदाज़े फ़िक्र और गहरे मुशाहदात की तारीफ़ की है, जो इन मज़ामीन को क़ारी के लिए दिलचस्प और कारामद बनाते हैं।
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