कुशादा सह्न खुली खिड़कियाँ सुनहरी धूप
कुशादा सह्न खुली खिड़कियाँ सुनहरी धूप
क़दीम पेड़ झुकी टहनियाँ सुनहरी धूप
वो जुस्तुजू का नशा बचपने के वो मौसम
लदी-फँदी हुई झर-बेरियाँ सुनहरी धूप
लिपे-पुते हुए आँगन में धूप छाँव का खेल
वो मेरे गाँव का कच्चा मकाँ सुनहरी धूप
निगलता जाता है बारूद रंग फूलों के
ये मुझ से करती है सरगोशियाँ सुनहरी धूप
कहाँ से लाएँगे बच्चों के वास्ते अपने
गई सदी का खुला आसमाँ सुनहरी धूप
कहानियों में सुनाया करेंगे आगे लोग
सितारे फूल धनक तितलियाँ सुनहरी धूप
ख़ुदा-न-कर्दा कि मिट्टी से हो कभी नाराज़
ये मुस्कुराती हुई मेहरबाँ सुनहरी धूप
- पुस्तक : एक दिया और एक फूल (पृष्ठ 92)
- रचनाकार : इशरत आफ़रीं
- प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2022)
- संस्करण : 2nd
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