वो ग़ैरों से हमारा ज़िक्र कुछ इस तरह करते हैं

वो ग़ैरों से हमारा ज़िक्र कुछ इस तरह करते हैं
डा. चरनजीत सिंह सागर
MORE BYडा. चरनजीत सिंह सागर
वो ग़ैरों से हमारा ज़िक्र कुछ इस तरह करते हैं
कि हम मर मर के जीते हैं कभी जी जी के मरते हैं
पड़ी है गर्द जो जीवन के आईने पे मत पोंछो
कि अब हम अपने माज़ी के तसव्वुर से भी डरते हैं
बढ़ी जाती है कुछ इस तरह से दिल की परेशानी
कि करने कुछ निकलते हैं मगर कुछ कर गुज़रते हैं
समझते थे गिला कोई न होगा ज़िंदगानी से
मगर हम क्या करें जब नक़्श यादों के उभरते हैं
सिवा ज़िल्लत के दामन में नहीं अब कुछ यहाँ अपने
कि तब हर साँस जीते थे तो अब हर साँस मरते हैं
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