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नग़्मा-ए-वहदत

महवी सिद्दीक़ी

नग़्मा-ए-वहदत

महवी सिद्दीक़ी

MORE BYमहवी सिद्दीक़ी

    हर तरफ़ जल्वा-ए-क़ुदरत है नुमायाँ तेरा

    फिर भी आसाँ नहीं इंसान को 'इरफ़ाँ तेरा

    अल्लह अल्लह ये करम रहमत-ए-यज़्दाँ तेरा

    'आसियों पर भी रहा साया-ए-दामाँ तेरा

    हर जगह सिक्का रवाँ है तिरी यकताई का

    दिल से क़ाइल है हर इक दीदा-ए-हैराँ तेरा

    आस्ताने पे तिरे कौन नहीं सर-ब-सुजूद

    कौन दुनिया में नहीं ताबे'-ए-फ़रमाँ तेरा

    तू जो बरहम हो तो इक बर्क़-ए-बला चश्म-ए-'इताब

    और ख़ुश हो तो तबस्सुम हो गुल-अफ़शाँ तेरा

    हश्र में काश ये पूछे तिरी रहमत मुझ से

    आइना-गार बता क्या है अब अरमाँ तेरा

    सब को तस्लीम तिरी बंदा-नवाज़ी या-रब

    सब को इक़रार कि हर शय पे है एहसाँ तेरा

    जो बशर राह-ए-हिदायत से भटक जाता है

    रास्ता उस को बता देता है क़ुरआँ तेरा

    रहम फ़रमा कि हुआ सारा ज़माना दुश्मन

    आज हर बंदा-ए-मोमिन है परेशाँ तेरा

    आस्ताने से तिरे जाए कहाँ अब 'महवी'

    कि अज़ल ही से है वाबस्ता-ए-दामाँ तेरा

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