ऐ सरवर-ए-शे'र-ओ-अदब-ओ-हुस्न-ए-तग़ज़्ज़ुल
रोचक तथ्य
رئیس المتغزلین حضرت جگر مراد آبادی
ऐ सरवर-ए-शे'र-ओ-अदब-ओ-हुस्न-ए-तग़ज़्ज़ुल
रेहलत का नहीं है तिरी यारा-ए-तहम्मुल
कम 'इश्क़ नहीं मर्तबा-ए-हुस्न से बिल्कुल
बेदार किया तू ने ये एहसास-ए-तक़ाबुल
मजमू'आ-ए-अफ़्कार तिरा कैफ़ की दुनिया
और 'आलम-ए-पाकीज़गी-ए-ज़ौक़-ओ-तख़य्युल
तू ने किए तख़्लीक़ अदब के नए शहकार
था सिन्फ़-ए-ग़ज़ल में जो तिरा फ़िक्र-ओ-तअम्मुल
अल्लह रे तिरा सिद्क़-ओ-यक़ीं वज़'-ओ-शराफ़त
मद्दाह हैं अहल-ए-दिल ओ ईसार ओ तवक्कुल
नज़्ज़ारा-ए-रा'नाई-ए-शादाबी-ए-गुलशन
गुलज़ार-ए-सुख़न का है तिरा हुस्न-ओ-तहम्मुल
ढाला है तग़ज़्ज़ुल के नए साँचों में तू ने
मज़मून दिल-ओ-चश्म-ओ-लब-ओ-आरिज़-ओ-काकुल
हर शे'र-ए-दिल-आवेज़ छलकता हुआ साग़र
हर एक ग़ज़ल ख़ूब-ओ-मुरस्सा' सबद-ए-गुल
था हुस्न-ए-तरन्नुम तिरा फ़िरदौस-ए-समा'अत
ऐ फ़ख़्र-ए-अदब क़ाफ़िला-सालार-ए-तग़ज़्ज़ुल
था तेरे हर इक शे'र पे तहसीन का 'आलम
और दाद का संजीदा-ओ-पुर-लुत्फ़ हसीं ग़ुल
हैं ख़ास तनव्वो’ से सुख़न में तिरे मज़कूर
सर्व-ओ-समन-ओ-नस्तरन-ओ-लाला-ओ-सुंबुल
है तेरी ग़ज़ल तब' की पुर-कैफ़ रवानी
और हुस्न-ए-ख़यालात का दिलचस्प तसलसुल
कुछ और हुई है तिरे अंदाज़-ए-बयाँ से
पुर-लुत्फ़-ओ-दिल-आवेज़ हदीस-ए-गुल-ओ-बुलबुल
'इन'आम' दु'आ-गो है मिले रुतबा-ए-‘आली
जन्नत में तुझे सरवर-ए-'आलम के तवस्सुल
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