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हसीनाओं को मशवरा

असरार जामई

हसीनाओं को मशवरा

असरार जामई

MORE BYअसरार जामई

    हसीनो अगर तुम को है पास-ए-'इज़्ज़त

    तो सुन लो सुनाता हूँ शा'इर की फ़ितरत

    मानोगी मेरी तो फूटेगी क़िस्मत

    रहेगी मुक़द्दर में ज़िल्लत ही ज़िल्लत

    जो 'असरार' कहता है वो मान लो तुम

    ये कैसे फ़रेबी हैं ये जान लो तुम

    ये ज़ुल्फ़ों की छाओं घनी चाहते हैं

    ये पलकों की चिलमन तनी चाहते हैं

    ये होंटों की हर दम हनी चाहते हैं

    ये नाज़ुक बदन कुंदनी चाहते हैं

    तख़य्युल में गंग-ओ-जमन देखते हैं

    हसीनों का कोमल बदन देखते हैं

    दर-ओ-बाम पर इन की रहती नज़र है

    इधर है जो लट-पट तो गट-पट उधर है

    है इन की जबीं और हसीनों का दर है

    कहाँ जूते चप्पल का इन पर असर है

    ये रुस्वा भी कर के चहेते रहे हैं

    हसीनों पे मर मर के जीते रहे हैं

    जहाँ मिल गई उन को कोई हसीना

    तो आया जबीं पर हवस का पसीना

    समझ लो कि अच्छा नहीं है क़रीना

    ख़ुदा ही बचाए अब उस का सफ़ीना

    ये ग़ैरों की बीवी पे डालें कमंदें

    वो चप्पल भी मारें तो ये जान-ओ-तन दें

    किसी से ये कहते हैं नाज़ुक कली हो

    मिरे दिल की रानी हो नाज़ों पली हो

    मिरी आरज़ूओं की रौशन गली हो

    वहीं हैं बहारें जहाँ तुम चली हो

    ये सब चापलूसी की बातें बना कर

    उन्हें मोम करते हैं टस्वे बहा कर

    दिल-ओ-ज़ेहन के ये बड़े ही फ़ुतूरी

    हसीनों के आगे करें जी-हुज़ूरी

    मगर उन को काफ़िर भी कहना ज़रूरी

    'अजब ज़ात इन की नारी नूरी

    सुना कर मोहब्बत का झूटा फ़साना

    ये बुलबुल फँसाने को रखते हैं दाना

    सदा इन की तख़्ईल जाली रही है

    हमेशा से जेब इन की ख़ाली रही है

    ख़ुदी इन की हर दम सवाली रही है

    हर इक बात इन की निराली रही है

    तुम्हारी अदाओं पे बस जान देंगे

    लगेगी अगर भूक तो पान देंगे

    ये शा'इर हैं शादी के क़ाइल नहीं हैं

    ये 'आशिक़ हैं दिल इन के घायल नहीं हैं

    ये मजनूँ हैं लैला पे माइल नहीं हैं

    ये घड़ियाँ हैं वो जिन में डायल नहीं हैं

    हसीनों की हर दम बनाते हैं दुर्गत

    अज़ल से ही है चुलबुली इन की फ़ितरत

    बुढ़ापे में चिकनी डली ढूँडते हैं

    चमन में ये नौरस कली ढूँडते हैं

    ये मूरत कोई मन-चली ढूँडते हैं

    हसीनों की हर दम गली ढूँडते हैं

    लगाते हैं इस तरह गलियों का चक्कर

    कि पेड़ों पे जैसे उछलते हों बंदर

    ये मकड़े हैं ख़ुद इन के अश'आर जाले

    वो मकड़ा जो मक्खी को झट से फँसा ले

    हनी चूस ले और कचूमर निकाले

    करे बा'द इस के ख़ुदा के हवाले

    यही हाल इन का हमेशा रहा है

    यही इन का देरीना पेशा रहा है

    ये शर्म-ओ-हया को जफ़ा मानते हैं

    जफ़ा को ये हुस्न-ओ-अदा मानते हैं

    ये ज़ुल्फ़ों को काली घटा मानते हैं

    फ़लक को ये उल्टा तवा मानते हैं

    जो समझाइए तो बिगड़ जाएँगे ये

    नदामत के बदले उखड़ जाएँगे ये

    ये करते नहीं कुछ कमाते नहीं हैं

    ये ख़ुद खा तो लेंगे खिलाते नहीं हैं

    ये बच्चों को अपने पढ़ाते नहीं हैं

    ये कमरों को अपने सजाते नहीं हैं

    सफ़ाई के दर पर ये जाते नहीं हैं

    ये शा'इर महीनों नहाते नहीं हैं

    जो मेहमान आए कोई इन के घर पर

    तो ये ले के बैठेंगे शे'रों के दफ़्तर

    सुनाएँगे अश'आर पहले तो गा कर

    पिलाएँगे तब चाय त्योरी चढ़ा कर

    उधार आएगी चाय-ख़ानों से वो भी

    कि रहती है घर में चीनी पत्ती

    अगर तुम कभी इन की बेगम बनोगी

    कोई बात इन से मचल कर कहोगी

    ये कह देंगे मतला' ग़ज़ल का सुनोगी

    ख़ुदा की क़सम सर को अपने धुनोगी

    सुना कर ग़ज़ल बोर करते रहेंगे

    सुनेंगे कुछ शोर करते रहेंगे

    उड़ाते रहे हैं ये ज़ेहनी ग़ुबारा

    नहीं दाल रोटी का गरचे सहारा

    किसी रुख़ पे तिल का ये कर के नज़ारा

    ये बख़्शें समरक़ंद-ओ-तूस-ओ-बुख़ारा

    बुख़ारा के मालिक ये आए कहाँ से

    ज़रा कोई पूछे तो शा'इर मियाँ से

    हसीनों तुम्हें मशवरा है हमारा

    लगाओ दिल शा'इरों से ख़ुदारा

    नहीं तो उठाती रहोगी ख़सारा

    ये है ‘अक़्ल-मंदों को काफ़ी इशारा

    सदा मुब्तला हैं ये ज़ेहनी ख़लल में

    नहीं ताल-मेल इन के क़ौल-ओ-'अमल में

    इन्हें देख कर मुस्कुराओ हरगिज़

    नदीदों से नज़रें लड़ाओ हरगिज़

    ग़ज़ल इन की तुम गुनगुनाओ हरगिज़

    कभी इन के झाँसे में आओ हरगिज़

    ये भँवरे हैं कलियों का रस चूसते हैं

    गुलों को भी मिस्ल-ए-मगस चूसते हैं

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