'आलम-ए-कशमकश
मैं एक ऐसी जगह आया हूँ
जहाँ हर शय
इबहाम के क़ीमती रंग-बिरंगे जोड़े
में मल्बूस है
मुझे ऐसा लगता है
मैं पिकासो की पेंटिंगज़ में घुस चुका हूँ
या फिर वैन गोग के दिमाग़ में
यहाँ इंसान नहीं हैं
मगर इंसान नुमा चेहरे हैं
हर चेहरा चेहरा-नुमा है
और हर चेहरे की 9 आँखें हैं या शायद 6
मुझे बहुत से धुँदले हाथ पाँव
नज़र आ रहे हैं
उन की बहुत सारी उँगलियाँ हैं
और हर उँगली के कई नाख़ुन हैं
यहाँ ख़यालात का एक गिरोह है
उन का एक सरदार है
जिस का नाम नहीं है मगर वो मेरा हम-ख़याल है
और मुझे कहता है
ऐ मेरे हम-ख़याल
आइए हुज़ूर
'आलम-ए-कश्मकश में आप का स्वागत है
अब आप की वापसी मुमकिन नहीं
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