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मैं अभी नाकाम सही

अश्हर नदीमी

मैं अभी नाकाम सही

अश्हर नदीमी

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    मेरा फ़न दहर के बाज़ार में बे-दाम सही

    नाम गुमनाम सही मैं अभी नाकाम सही

    मेरी वीरान उमंगों पे बहार आने तक

    मुझ को मा'लूम है मरते हुए जीना है मुझे

    मेरी तक़दीर को गर्दिश से निकल जाने तक

    ज़हर हालात का हर हाल में पीना है मुझे

    मुझ को हालात की आँधी से डराने वालो

    शौक़ वो सैल-ए-रवाँ है जो नहीं रुक सकता

    सर ख़िरद का ये नहीं अहल-ए-जुनूँ का सर है

    सर ये हालात के क़दमों पे नहीं झुक सकता

    जो इरादों के चराग़ों को बुझा डालेगी

    वक़्त की तेज़ हवा तेज़ है इतनी भी नहीं

    रहरव-ए-मंज़िल-ए-मक़्सद को जो गुमराह करे

    फ़ितरत-ए-वक़्त शर-अंगेज़ है इतनी भी नहीं

    दूर से ही सही मंज़िल ये सदा देती है

    दिल में मंज़िल की तमन्ना हो तो चलना होगा

    राह में धूप बरस जाए कि शो'ले दहकें

    रहरव-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद को चलना होगा

    तुम अँधेरों से मुझे ख़ौफ़ दिलाते हो मगर

    इन अँधेरों से मुरादों की सहर निकलेगी

    इन अँधेरों ही में मंज़िल है कहीं पोशीदा

    जल्द या देर से निकलेगी मगर निकलेगी

    मेरा फ़न दहर के बाज़ार में बे-दाम सही

    नाम गुमनाम सही मैं अभी नाकाम ही

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