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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अफ़ज़ल गौहर राव

1965 | सरगोधा, पाकिस्तान

अफ़ज़ल गौहर राव

ग़ज़ल 22

अशआर 23

कभी दिल से गुज़रती हो कहीं आँखों से बहती हो

तुझे फिर भी कभी जू-ए-रवाँ हम कुछ नहीं कहते

क्या मुसीबत है कि हर दिन की मशक़्क़त के एवज़

बाँध जाता है कोई रात का पत्थर मुझ से

चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ

शहर का शहर हमारा तो नहीं हो सकता

जाने वो शहर में अब किस का बुरा मानता है

मैं तो जब बात करूँ उस से बुरा मानता है

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तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे

बे-ज़मीं लोगों के सर पर आसमाँ रहता नहीं

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