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आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी

1740 | फ़ैज़ाबाद, भारत

आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी

ग़ज़ल 2

 

अशआर 4

दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम होंगे

चर्चे यूँही रहेंगे अफ़्सोस हम होंगे

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जिसे इशरत-कदा-ए-दहर समझता था मैं

आख़िर-ए-कार वो इक ख़्वाब-ए-परेशाँ निकला

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यकताई पे है नाज़ तो इतना भी रहे याद

तुम सा मुझे तो तुम को भी मुझ सा मिलेगा

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बुरा हो या-इलाही दिल-लगी का

घटा की उम्र और उल्फ़त बढ़ा की

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चित्र शायरी 2

 

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