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अली अब्बास हुसैनी

1897 - 1969 | लखनऊ, भारत

प्रसिद्ध अफ़्साना निगार, नाटककार और आलोचक। अपनी कहानी ‘मेला घुमनी’ के लिए मशहूर

प्रसिद्ध अफ़्साना निगार, नाटककार और आलोचक। अपनी कहानी ‘मेला घुमनी’ के लिए मशहूर

अली अब्बास हुसैनी की कहानियाँ

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नूर-ओ-नार

अच्छे-बुरे की प्रतिस्पर्धा और आतंरिक परिवर्तन इस कहानी का विषय है। मौलाना इजतबा अपने दारोग़ा दामाद का जनाज़ा पढ़ाने से सिर्फ़ इसलिए मना कर देते हैं कि वो शराबी, बलात्कारी था और उनकी बेटी ज़किया के ज़ेवर तक बेच खाए थे। उसी ग़ुस्से की हालत में इत्तिफ़ाक़ से उनके हाथ ज़किया की डायरी लग जाती है, जिसमें उसने बहुत सादगी से अपने शौहर से ताल्लुक़ात के नौईयत को बयान किया था और हर मौक़े पर शौहर की तरफ़दारी और हिमायत की थी। उसमें उसके ज़ेवर चुराने के वाक़ीआ का भी ज़िक्र था जिसके बाद से अज़हर एक दम से बदल गया था। माफ़ी तलाफ़ी के बाद वो हर वक़्त ज़किया का ख़्याल रखता, तपेदिक़ की वजह से ज़किया चाहती थी कि वो उसके क़रीब न आए लेकिन अज़हर नहीं मानता था। मौलाना ये पढ़ कर डायरी बंद कर देते हैं और जा कर नमाज़ जनाज़ा पढ़ा देते हैं।

आम का फल

निचले तबक़े की नफ़्सियात को इस कहानी में बयान किया गया है। बदलिया चमारिन जाति की है जो शादी के तीन माह बाद ही विधवा हो गई है। उसकी सास और ननदें बजाय इसके कि उसे सांत्वना देतीं उसको डायन वग़ैरा कह कर घर से निकाल कर बैलों के बाड़े में रहने के लिए मजबूर कर देती हैं। छोटे से गाँव में इस घटना की ख़बर हर शख़्स को हो जाती है, इसीलिए हर नौजवान बदलिया के लिए हमदर्दी के जज़्बात से लबरेज़ नज़र आता है और रात के अँधेरे में उसके खाने के लिए छोटी मोटी चीज़ें दे जाता है। उसी सिलसिले में गाँव का बदमाश चन्दी, जो एक दिन पहले ही एक साल की जेल काट कर आया है, वो ठाकुर के बाग़ से आम चुरा कर बदलिया के लिए ले जाता है। बदलिया उसे देखकर डर से चीख़ पड़ती है। उसकी ननदें और सास उस पर बदकिरदारी का इल्ज़ाम लगाती हैं और मारना पीटना शुरू करती हैं। वो घबरा कर भागती है तो उसे रास्ते में चन्दी मिल जाता है और वो समझा बुझा कर उसे अपनी बीवी बनने पर राज़ी कर लेता है। जब वो चमर टोली से गुज़रता है तो जैसे सबको साँप सूंघ जाता है और कोई भी चन्दी का रास्ता रोकने की हिम्मत नहीं करता।

ख़ुश क़िस्मत लड़का

ग़रीबी इंसान को कितना मजबूर-बेबस कर देती है और ज़िंदगी का दृष्टिकोण कितना सीमित हो जाता है, यह इस कहानी में बयान किया गया है। रहीमन एक बुढ़िया है जिसका नौ साल का पोता हमीद है जो अनाथ है। रहीमन हमीद को लेकर गाँव से शहर की तरफ़ चलती है और रास्ते में मिलने वाले हर शख़्स से बताती है कि उसको नौकरी मिल गई है। रहीमन रास्ते भर हमीद को मालिक- नौकर के अधिकार बताने के साथ साथ ये भी कहती है कि तू बड़ा ख़ुश-क़िस्मत है कि नौ साल की उम्र में तुझे नौकरी मिल रही है। शहर पहुँच कर वो हमीद को एक अंधे फ़क़ीर के हवाले कर देती है जिसे भीख मांगने के लिए एक बच्चे की ज़रूरत होती है और फिर आसमान की तरफ़ देखकर कहती है, तेरा शुक्र है मरे मालिक! तू ने मरे बच्चे को इतना ख़ुश-क़िस्मत बनाया कि वो नौवीं ही बरस में काम पर लग गया।

एक माँ के दो बच्चे

इस कहानी में सामाजिक सौहार्द को बयान किया गया है। शेख़ सईद कलकत्ता में परदेसी हैं, सांप्रदायिक दंगों की आग भड़क रही है। वो नवजात नवासे के लिए दूध लेकर लौट रहे होते हैं कि उन्हें एक हिंदू जसवंत राय क़त्ल करने की नीयत से अग़वा कर लेता है। जसवंत के जवान बेटे को मुसलमानों ने क़त्ल कर दिया था, लेकिन जब शेख़ सईद उसे बताते हैं कि उनका जवान बेटा और बेटी इसी जुनून की नज़र हो गए हैं और उनका तीन दिन का नवासा भूख से होटल में तड़प रहा है तो जसवंत के अंदर एक दम तब्दीली पैदा होती है और वो मेरा भाई मेरा भाई कह कर शेख़ सईद से लिपट जाता है और वो फिर उनको अपने घर लाता है और शेख़ सईद के नवासे को अपनी बेवा बहू की गोद में दे देता है कि ये तेरा दूसरा बचा है, जिसके दो बच्चे हों उसको शौहर का ग़म क्यों हो?

बिट्टी

"इस कहानी में औरत के स्वाभाविक लाज और पूरब मूल्यों को बयान किया गया है। बिट्टी एक अंग्रेज़ नौजवान लड़की है जो अपनी दोस्त के जन्मदिन में लारी से इलाहाबाद जा रही है। अंग्रेज़ होने के बावजूद वो बहुत ही झेंपू क़िस्म की लड़की है। वो जिस डिब्बे में बैठी होती है उसी में एक हिन्दुस्तानी जोड़ा सवार होता है जो हाव भाव से पढ़ा लिखा मालूम होता है लेकिन बिट्टी के अंदर हाकिमीयत का ख़ून जोश मारता है और वो उन्हें हक़ारत से देखती है। इसी बीच एक एंग्लो इंडियन फ़ौजी उसके पास आकर बैठता है और बे-तकल्लुफ़ होने की कोशिश करता है। फिर वो सिगरेट निकालता है तो हिन्दुस्तानी नौजवान उसे मना करता है और तब उन्हें मालूम होता है कि डिब्बा रिज़र्व है लेकिन अगर वो सिगरेट न पिए तो दोनों मियाँ-बीवी बैठ सकते हैं। मियाँ-बीवी का शब्द सुनकर बटी के हवास गुम हो जाते हैं लेकिन वो इस झूठ का इसलिए खंडन नहीं करती कि फिर उसे डिब्बा छोड़ कर काले हिन्दुस्तनियों के साथ बैठना पड़ेगा। नवजवान को शह मिल जाती है और फिर वो और ज़्यादा बे-तकल्लुफ़ हो जाता है। बिट्टी को उसकी बातचीत से मालूम होता है कि वो नौजवान अनाथ है और उसके दोस्त, उस्ताद के अलावा इस दुनिया में कोई नहीं है। इलाहाबाद पहुँच कर बटी ख़ुश हो जाती है और वो ऐंग्लो इंडियन लड़के के साथ उसके होटल चली जाती है।"

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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