अलक़मा शिबली
ग़ज़ल 23
नज़्म 18
अशआर 4
ये क्या कि फ़क़त अपनी ही तस्वीर बनाओ
ऐ नक़्श-गरो वुसअत-ए-फ़न कुछ तो दिखाओ
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere