अंजुम ख़याली
ग़ज़ल 12
अशआर 15
आँख झपकीं तो इतने अर्से में
जाने कितने बरस गुज़र जाएँ
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कहाँ मिला मैं तुझे ये सवाल ब'अद का है
तू पहले याद तो कर किस जगह गँवाया मुझे
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कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है
जैसे बाज़ार में हर घर से गली आती है
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जाँ क़र्ज़ है सो उतारते हैं
हम उम्र कहाँ गुज़ारते हैं
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मुझे कुछ देर रुकना चाहिए था
वो शायद देख ही लेता पलट कर
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