असद जाफ़री के शेर
यहाँ तक सिलसिला पहुँचा है उस की कम-बयानी का
वो नौ बच्चों की माँ है फिर भी दा'वा है जवानी का
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लड़ाई में न काम आती हैं तक़रीरें न तकरारें
कि उस की एक आहट से लरज़ जाती हैं दीवारें
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मुक़द्दर ने भला हम से मज़ाक़ आख़िर किया क्या है
ख़ुदाया जिस ख़ता की ये सज़ा है वो ख़ता क्या है
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बुआ कह कर पुकारे जो उसे सौ-सौ सुनाती है
वो इस पीराना-साली में भी बाजी कहलवाती है
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