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बेताब अज़ीमाबादी

1866 - 1928 | पटना, भारत

शाद अज़ीमाबादी के प्रिय शागिर्दों में शामिल

शाद अज़ीमाबादी के प्रिय शागिर्दों में शामिल

बेताब अज़ीमाबादी

ग़ज़ल 12

अशआर 5

असर पूछिए साक़ी की मस्त आँखों का

ये देखिए कि कोई होश्यार बाक़ी है

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तड़प के रह गई बुलबुल क़फ़स में सय्याद

ये क्या कहा कि अभी तक बहार बाक़ी है

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कितने इल्ज़ाम आख़िर अपने सर

तुम ने ग़ैरों को सर चढ़ा के लिए

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लड़ गई उन से नज़र खिंच गए अबरू उन के

माअ'रके इश्क़ के अब तीर-ओ-कमाँ तक पहुँचे

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दिल जो देता है ज़रा सोच ले अंजाम को भी

उन की आँखों में मुरव्वत नहीं कुछ नाम को भी

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पुस्तकें 1

 

चित्र शायरी 1

 

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