Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Faisal Qadri Gunnauri's Photo'

फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी

1995 | गुन्नौर, भारत

फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी के शेर

57
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

हर किसी शख़्स के मुआफ़िक़ है

ऐसा लगता है तू मुनाफ़िक़ है

कितनी बे-रंग ज़िंदगी है मिरी

'इश्क़ के रंग यार भर दो ना

तुम्हारे जैसा देखा कोई मिरे हमदम

हसीन यूँ तो जहाँ में मुझे हज़ार मिले

कभी ज़ियादा कभी कम उदास रहता हूँ

तुम्हारी याद में हर दम उदास रहता हूँ

जन्म लेती हैं नई ख़्वाहिशें जब भी दिल में

मुफ़लिसी है कि वहीं हाथ पकड़ लेती है

दिल का मिरे परिंदा तुम्हारे क़फ़स में था

जब तक तुम्हारा हाथ मिरी दस्तरस में था

तुम जो चाहो वो करते फिरते हो

सारी पाबंदियाँ हमी पर हैं

तेरा आईना कह रहे हैं मुझे

मेरी तस्वीर देखने वाले

क़ीमत लगा रहे हैं जो दीदार-ए-यार की

वाक़िफ़ नहीं हैं वो अभी राहों से प्यार की

उस ने जब से हाथ पकड़ना छोड़ दिया

तब से हम ने साथ में चलना छोड़ दिया

है इन में कैसा जादू बोलती हैं

तिरी आँखें भी उर्दू बोलती हैं

तुम्हारे जैसा देखा कोई मिरे हमदम

हसीन यूँ तो जहाँ में मुझे हज़ार मिले

एक हम हैं कि ज़ख़्म झेलते हैं

एक वो हैं कि दिल से खेलते हैं

उफ़ सितमगर तिरी अदाएँ भी

याद आती हैं दिल जलाती हैं

किस की ख़ुशबू से मो'अत्तर ये फ़ज़ा होने लगी

गुल-बदन कौन ये गुज़रा है गली से मेरी

जाने वाला चला गया तो क्यों

उस के जाने का ग़म किया जाए

जिन को अपना समझ रहे थे हम

रंग उन को बदलते देख लिया

तिरे करम से जो दामन हमारे भर जाएँ

हसद की आग में जल जल के लोग मर जाएँ

तेरी ख़ातिर जो हुई उस हर शहादत को सलाम

सरज़मीन-ए-हिन्द तेरी शान-ओ-शौकत को सलाम

अब ज़िंदगी से कोई भी शिकवा नहीं मुझे

तू मिल गया तो कोई तमन्ना नहीं मुझे

उन की हज़ार कोशिशें और ज़िद अलग रही

अपनी तो डेढ़ ईंट की मस्जिद अलग रही

वो देखो लोग शीन अलिफ़ 'ऐन रे हुए

हम 'ऐन शीन क़ाफ़ में उलझे ही रह गए

हम ऐसे सारे सुबूतों को फाड़ डालेंगे

हमारे बीच में जो भी दराड़ डालेंगे

किसी तरह तो हमारा विसाल हो जाए

अगरचे इस के लिए इंतिक़ाल हो जाए

सौदा कभी ज़मीर का मैं ने किया नहीं

सद-शुक्र मैं भी 'इश्क़ में ताजिर हुआ नहीं

ये कैसा बोझ है भारी है दिल पर

'अजब सी कैफ़ियत तारी है दिल पर

ज़िंदगी मिस्ल-ए-कहकशाँ होती

काश मेरी भी आज माँ होती

तुम जो चाहो वो करते फिरते हो

सारी पाबंदियाँ हमी पर हैं

टिमटिमाते थे जो चराग़ कभी

अब वो क़िंदील होने वाले हैं

जाने वाला चला गया तो क्यों

उस के जाने का ग़म किया जाए

जिन को अपना समझ रहे थे हम

रंग उन को बदलते देख लिया

टिमटिमाते थे जो चराग़ कभी

अब वो क़िंदील होने वाले हैं

तिरे करम से जो दामन हमारे भर जाएँ

हसद की आग में जल जल के लोग मर जाएँ

कैसे उसे पता हो कि ममता 'अज़ीम है

हम जैसा कम-सिनी से जो बच्चा यतीम है

क़ीमत लगा रहे हैं जो दीदार-ए-यार की

वाक़िफ़ नहीं हैं वो अभी राहों से प्यार की

ज़िंदगी मिस्ल-ए-कहकशाँ होती

काश मेरी भी आज माँ होती

सौदा कभी ज़मीर का मैं ने किया नहीं

सद-शुक्र मैं भी 'इश्क़ में ताजिर हुआ नहीं

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए