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Faisal Qadri Gunnauri's Photo'

फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी

1995 | गुन्नौर, भारत

फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी के शेर

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हर किसी शख़्स के मुआफ़िक़ है

ऐसा लगता है तू मुनाफ़िक़ है

कितनी बे-रंग ज़िंदगी है मिरी

'इश्क़ के रंग यार भर दो ना

जन्म लेती हैं नई ख़्वाहिशें जब भी दिल में

मुफ़लिसी है कि वहीं हाथ पकड़ लेती है

है इन में कैसा जादू बोलती हैं

तिरी आँखें भी उर्दू बोलती हैं

दिल का मिरे परिंदा तुम्हारे क़फ़स में था

जब तक तुम्हारा हाथ मिरी दस्तरस में था

तुम्हारे जैसा देखा कोई मिरे हमदम

हसीन यूँ तो जहाँ में मुझे हज़ार मिले

तेरा आईना कह रहे हैं मुझे

मेरी तस्वीर देखने वाले

उन की हज़ार कोशिशें और ज़िद अलग रही

अपनी तो डेढ़ ईंट की मस्जिद अलग रही

वो देखो लोग शीन अलिफ़ 'ऐन रे हुए

हम 'ऐन शीन क़ाफ़ में उलझे ही रह गए

कभी ज़ियादा कभी कम उदास रहता हूँ

तुम्हारी याद में हर दम उदास रहता हूँ

किस की ख़ुशबू से मो'अत्तर ये फ़ज़ा होने लगी

गुल-बदन कौन ये गुज़रा है गली से मेरी

तेरी ख़ातिर जो हुई उस हर शहादत को सलाम

सरज़मीन-ए-हिन्द तेरी शान-ओ-शौकत को सलाम

ज़िंदगी मिस्ल-ए-कहकशाँ होती

काश मेरी भी आज माँ होती

तुम जो चाहो वो करते फिरते हो

सारी पाबंदियाँ हमी पर हैं

जाने वाला चला गया तो क्यों

उस के जाने का ग़म किया जाए

जिन को अपना समझ रहे थे हम

रंग उन को बदलते देख लिया

क़ीमत लगा रहे हैं जो दीदार-ए-यार की

वाक़िफ़ नहीं हैं वो अभी राहों से प्यार की

तिरे करम से जो दामन हमारे भर जाएँ

हसद की आग में जल जल के लोग मर जाएँ

जाने वाला चला गया तो क्यों

उस के जाने का ग़म किया जाए

जिन को अपना समझ रहे थे हम

रंग उन को बदलते देख लिया

टिमटिमाते थे जो चराग़ कभी

अब वो क़िंदील होने वाले हैं

तिरे करम से जो दामन हमारे भर जाएँ

हसद की आग में जल जल के लोग मर जाएँ

कैसे उसे पता हो कि ममता 'अज़ीम है

हम जैसा कम-सिनी से जो बच्चा यतीम है

उस ने जब से हाथ पकड़ना छोड़ दिया

तब से हम ने साथ में चलना छोड़ दिया

अब ज़िंदगी से कोई भी शिकवा नहीं मुझे

तू मिल गया तो कोई तमन्ना नहीं मुझे

टिमटिमाते थे जो चराग़ कभी

अब वो क़िंदील होने वाले हैं

तुम्हारे जैसा देखा कोई मिरे हमदम

हसीन यूँ तो जहाँ में मुझे हज़ार मिले

एक हम हैं कि ज़ख़्म झेलते हैं

एक वो हैं कि दिल से खेलते हैं

सौदा कभी ज़मीर का मैं ने किया नहीं

सद-शुक्र मैं भी 'इश्क़ में ताजिर हुआ नहीं

उफ़ सितमगर तिरी अदाएँ भी

याद आती हैं दिल जलाती हैं

हम ऐसे सारे सुबूतों को फाड़ डालेंगे

हमारे बीच में जो भी दराड़ डालेंगे

किसी तरह तो हमारा विसाल हो जाए

अगरचे इस के लिए इंतिक़ाल हो जाए

क़ीमत लगा रहे हैं जो दीदार-ए-यार की

वाक़िफ़ नहीं हैं वो अभी राहों से प्यार की

तुम जो चाहो वो करते फिरते हो

सारी पाबंदियाँ हमी पर हैं

सौदा कभी ज़मीर का मैं ने किया नहीं

सद-शुक्र मैं भी 'इश्क़ में ताजिर हुआ नहीं

ये कैसा बोझ है भारी है दिल पर

'अजब सी कैफ़ियत तारी है दिल पर

ज़िंदगी मिस्ल-ए-कहकशाँ होती

काश मेरी भी आज माँ होती

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