माचिस लखनवी के शेर
और तो कुछ भी नहीं हज़रत-ए-'माचिस' लेकिन
आप में आग लगाने का कमाल अच्छा है
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वो उन का ज़माना था जहाँ अक़्ल बड़ी थी
ये मेरा ज़माना है यहाँ भैंस बड़ी है
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वाइज़ ने मुझ में देखी है ईमान की कमी
वाइज़ में सिर्फ़ दुम की कसर देखता हूँ मैं
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जिस मौलवी को आगे पढ़ाना था मेरा अक़्द
ठहरा है उन का अक़्द उसी मौलवी के साथ
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ढूँडिए ख़ैर से जा कर कोई मोटी ससुराल
हाथ जो मुफ़्त में आए तो वो माल अच्छा है
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वाइ'ज़ को जो देखो तो घटा-टोप अँधेरा
साक़ी को जो देखो तो किरन फूट रही है
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हुक्म बेगम के चला करते हैं जेलर की तरह
अब मिरा घर भी मुझे जेल हुआ जाता है
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तादाद में हैं औरतें मर्दों से ज़्यादा
क़व्वालियाँ मौजूद हैं क़व्वाल नदारद
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जैसे इस्लाम में है रस्म मुसलमानी की
वैसे ही इश्क़ में है चाक-गरेबानी की
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जो भी हारेगा वही गालियाँ देगा उस को
जिस बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
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नज़्म-ए-जहाँ को ज़ेर-ओ-ज़बर देखता हूँ मैं
मादा के इख़्तियार में नर देखता हूँ मैं
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साए की तमन्ना में जहाँ बैठ गया हूँ
चंदिया पे वहीं ताक के दीवार गिरी है
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अल्लाह-रे रोब-ओ-दाब-ए-जुनूँ भागता है वो
जिस की तरफ़ उठा के नज़र देखता हूँ मैं
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इस क़दर सर्फ़ इलाही मिरे ख़ून-ए-दिल का
अब मोहब्बत का बजट फ़ेल हुआ जाता है
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मिरे पर उस को सौ दुर्रे न कहिए फिर तो क्या कहिए
तिरे आशिक़ की मय्यत डॉक्टर-ख़ाने में रक्खी है
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