नाम सय्यद मुहम्मद अली शाह, तख़ल्लुस ‘मय-कश’। 3 मार्च 1902 ई को आगरा में पैदा हुए। दर्स-ए-निज़ामीयः मदरसा आलीया आगरा से पूरी की। लिखना पढ़ना ही उनका अस्ल काम था। 25 अप्रैल 1991 ई. को आगरा में इंतिक़ाल कर गए। उनकी किताबों के नाम ये हैं: मैकदा, हर्फ़-ए-तमन्ना (शेरी मजमूए), नग़्मा और इस्लाम (जवाज़-ए-समा), नक़द-ए-इक़बाल (तन्क़ीद), शिर्क-व-तौहीद (मज़हब), हज़रत ग़ौस-उल-आज़म (मज़हब), मसाएल-ए-तसव्वुफ़ (अदब)। हर्फ़-ए-तमन्ना ,नक़द-ए-इक़बाल और मसाएल-ए-तसव्वुफ़ पर उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की तरफ़ से पुरस्कार मिले। वो शाएर के अलावा आलोचक और इक़बालिया के विशेषज्ञ थे और तसव्वुफ इनका मिज़ाज था।
नाम सय्यद मुहम्मद अली शाह, तख़ल्लुस ‘मय-कश’। 3 मार्च 1902 ई को आगरा में पैदा हुए। दर्स-ए-निज़ामीयः मदरसा आलीया आगरा से पूरी की। लिखना पढ़ना ही उनका अस्ल काम था। 25 अप्रैल 1991 ई. को आगरा में इंतिक़ाल कर गए। उनकी किताबों के नाम ये हैं: मैकदा, हर्फ़-ए-तमन्ना (शेरी मजमूए), नग़्मा और इस्लाम (जवाज़-ए-समा), नक़द-ए-इक़बाल (तन्क़ीद), शिर्क-व-तौहीद (मज़हब), हज़रत ग़ौस-उल-आज़म (मज़हब), मसाएल-ए-तसव्वुफ़ (अदब)। हर्फ़-ए-तमन्ना ,नक़द-ए-इक़बाल और मसाएल-ए-तसव्वुफ़ पर उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की तरफ़ से पुरस्कार मिले। वो शाएर के अलावा आलोचक और इक़बालिया के विशेषज्ञ थे और तसव्वुफ इनका मिज़ाज था।