1935 - 2008 | अलीगढ़, भारत
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क़ुबूल कैसे करूँ उन का फ़ैसला कि ये लोग
मिरे ख़िलाफ़ ही मेरा बयान माँगते हैं
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
कभी कभी तो किसी अजनबी के मिलने पर
बहुत पुराना कोई सिलसिला निकलता है
सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है
चलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें
इसी उमीद पे बरसें गुज़ार दीं हम ने
वो कह गया था कि मौसम पलट के आते हैं
Aab
1994
बारिश
1981
Barish
Daire
Shumara Number-003
1986
कभी कभी तो किसी अजनबी के मिलने पर बहुत पुराना कोई सिलसिला निकलता है
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