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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मोहम्मद असदुल्लाह

1958 | नागपुर, भारत

मोहम्मद असदुल्लाह

ग़ज़ल 22

नज़्म 22

अशआर 4

इक दनदनाती रेल सी उम्रें गुज़र गईं

दो पटरियों के बीच वही फ़ासले रहे

महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू से

चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है

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जाते बरस तुझ को सौंपा ख़ुदा को

मुबारक मुबारक नया साल सब को

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आब-दीदा हूँ मैं ख़ुद ज़ख़्म-ए-जिगर से अपने

तेरी आँखों में छुपा दर्द कहाँ से देखूँ

बच्चों की कहानी 7

पुस्तकें 25

चित्र शायरी 2

 

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