नश्तर अमरोहवी के शेर
दुर्गत बने है चाय में बिस्कुट की जिस तरह
शादी के बा'द लोगो वही मेरा हाल है
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दिन में तो कह रही थी कि तुम मेरे शेर हो
और उस के बा'द उल्लू बनाया तमाम रात
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बच्चों से मुँह को मोड़ के बेगम तो सो गईं
सू-सू हर इक को मैं ने कराया तमाम रात
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दो चार मंज़िलों ही पे साँसें उखड़ गईं
घुटनों पे है ज़वाल पता चल गया मुझे
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उस ने थाने में रपट कुछ ऐसी लिखवाई कि बस
फिर पुलिस ने की मिरी ऐसी पज़ीराई कि बस
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खा कर ये हाल हो गया होटल की रोटियाँ
जैसे कि हड्डियों पे मंढ़ी मेरी खाल है
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वो मोतियों से दाँत वो लम्बे सियाह बाल
नक़ली था सारा माल पता चल गया मुझे
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आज-कल किरदार का मेआ'र भी दौलत से है
इतनी सस्ती हो गई दस्तार-ओ-दानाई कि बस
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