रेनू नय्यर के शेर
अब ज़बाँ तक आ गईं है तल्ख़ियाँ
अब हमें फ़ौरन निकलना चाहिए
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किसी भी हश्र से महरूम ही रहा वो भी
मिरी तरह का जो किरदार था कहानी में
अभी मंज़र बदलते ही बदल जाएँगे सब चेहरे
बिछड़ते वक़्त का ग़म है अभी तू नम न कर आँखें
दिल की बाज़ी ऐसी बाज़ी है जिस में हम
हारें भी तो जीत मनाई जा सकती है
ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं
फिर अपनी दुआ का असर देखते हैं
तिरी नज़रों से गुज़री रहगुज़र भी
हज़ारों मंज़िलों का रास्ता है
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टैग : मंज़िल
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चीटियाँ चलने लगी हैं पीठ में
अब तुम्हारा तीर चलना चाहिए
वहाँ बस में नहीं हूँ और सब है
यहाँ बस तू ही तू है और क्या है
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शीशा-सिफ़त थे आप और शीशा-सिफ़त थे हम
बिखरे हुए से आप हैं बिखरे हुए से हम