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सलीम अंसारी

1962 | जालंधर, भारत

सलीम अंसारी

ग़ज़ल 16

नज़्म 12

दोहा 11

जुर्म-ए-मोहब्बत की मिली हम को ये पादाश

अपने काँधे पर चले ले कर अपनी लाश

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आँगन के इक पेड़ की ठंडी मीठी छाँव

शहर में जैसे गया चल कर मेरा गाँव

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मेरे चारों ओर थे तरह तरह के लोग

फिर भी मुझ को लग गया तंहाई का रोग

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रातें जंगल की तरह और दिन रेगिस्तान

मेरी जीवन यात्रा कैसे हो आसान

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इस से बढ़ कर और क्या रिश्तों पर दुश्नाम

भाई आया पूछने मुझ से मेरा नाम

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पुस्तकें 4

 

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