सरवत हुसैन की टॉप 20 शायरी
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में
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टैग : ख़ुदकुशी
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मिट्टी पे नुमूदार हैं पानी के ज़ख़ीरे
इन में कोई औरत से ज़ियादा नहीं गहरा
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टैग : औरत
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दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
मिट्टी की सुंदरता देखो और मुझे देखो
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मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर
इक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
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'सरवत' तुम अपने लोगों से यूँ मिलते हो
जैसे उन लोगों से मिलना फिर नहीं होगा
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ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
काम इस पल है तिरे जिस्म की उर्यानी से
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मैं आग देखता था आग से जुदा कर के
बला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर
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भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा
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शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तक
कितनी मेहराबें पड़ती हैं कितने दर आते हैं
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इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
वो कौन थी जो रक़्स के आलम में मर गई
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टैग : बाम
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मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
किसी दिन उस को ताज-ओ-तख़्त से महरूम कर देखूँ
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वो इक सूरज सुब्ह तलक मिरे पहलू में
अपनी सब नाराज़गियों के साथ रहा
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सियाही फेरती जाती हैं रातें बहर ओ बर पे
इन्ही तारीकियों से मुझ को भी हिस्सा मिलेगा
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बहुत मुसिर थे ख़ुदायान-ए-साबित-ओ-सय्यार
सो मैं ने आइना ओ आसमाँ पसंद किए
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कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया
किसी शाह-ज़ादी के इश्क़ ने मिरा दिल सितारों से भर दिया
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मैं अपनी प्यास के हमराह मश्कीज़ा उठाए
कि इन सैराब लोगों में कोई प्यासा मिलेगा
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