शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल 38
नज़्म 8
अशआर 17
अभी से फ़ल्सफ़ा-ए-रेग-ज़ार की बातें
अभी तो 'इश्क़ के मकतब में हाज़िरी हुई है
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आज की रात है बहुत भारी
आज की रात बस गुज़र जाए
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ज़माना जिन की क़यादत में गामज़न था वो लोग
भटक गए तिरी आँखों की रहनुमाई में
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ये क्या कि ख़यालों से उड़ी जाती है ख़ुशबू
मैं ने तो अभी तक उसे सोचा भी नहीं है
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