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तैमूर हसन के शेर

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उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे

ख़ुद अपनी शोहरत पे रश्क आए सुख़न में ऐसा कमाल दे दे

फिर जो करने लगा है तू व'अदा

क्या मुकरने का फिर इरादा है

मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी

मैं ख़ुद को साबित करूँगा दावा नहीं करूँगा

तुझे मैं अपना नहीं समझता इसी लिए तो

ज़माने तुझ से मैं कोई शिकवा नहीं करूँगा

ख़ुशी ज़रूर थी 'तैमूर' दिन निकलने की

मगर ये ग़म भी सिवा था कि रात बीत गई

सफ़र में होती है पहचान कौन कैसा है

ये आरज़ू थी मिरे साथ तू सफ़र करता

हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं

अपने साथ इक शाम मनाया करते हैं

मकाँ से होगा कभी ला-मकान से होगा

मिरा ये म'अरका दोनों जहान से होगा

ये जंग जीत है किस की ये हार किस की है

ये फ़ैसला मिरी टूटी कमान से होगा

ज़िंदगी जंग है आसाब की और ये भी सुनो

इश्क़ आसाब को मज़बूत बना देता है

ज़िंदगी भर की रियाज़त मिरी बे-कार गई

इक ख़याल आया था बदले में वो क्या देता है

सूरज के उस जानिब बसने वाले लोग

अक्सर हम को पास बुलाया करते हैं

मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है

तुझे दी है कितनी कड़ी सज़ा तुझे इल्म है

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