ताज सईद

ग़ज़ल 6

नज़्म 2

 

अशआर 4

मैं ने ज़ुल्मत के फ़ुसूँ से भागना चाहा मगर

मेरे पीछे भागती फिरती मिरी रुस्वाई थी

किस ने कर हम को दी आवाज़ पिछली रात में

कौन हम को छेड़ने आया है इन लम्हात में

पत्ता पत्ता शाख़ से टूटे दरवाज़ों पे वहशत सी

यारो प्रेम कथा में किस ने दर्द की तान मिलाई है

मसअला ये भी तो है इस अहद का जान-ए-जाँ

क्यूँ निछावर जाँ करें किस के लिए ज़िंदा रहें

दोहा 2

हर इक का दिल मोह लेती थी उस की इक मुस्कान

ये मुस्कान थी साथ उस के चेहरे की पहचान

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मुझ से कन्नी काट गोरी मैं हूँ तेरी छाया

मैं इक दाता जोगी बन कर तेरी गली में आया

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पुस्तकें 9

 

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