aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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यूसुफ़ तक़ी

1943 | कोलकाता, भारत

शोधकर्ता, आलोचक, शायर, पूर्व अध्यक्ष उर्दू विभाग कलकत्ता युनिवर्सिटी

शोधकर्ता, आलोचक, शायर, पूर्व अध्यक्ष उर्दू विभाग कलकत्ता युनिवर्सिटी

यूसुफ़ तक़ी

ग़ज़ल 15

नज़्म 6

अशआर 6

बे-सदा क्यूँ गुज़रते हो आवाज़ दो

अब भी कुछ लोग अंदर मकानों में हैं

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आओ पुरानी याद के शो'लों में ताप लें

कितने हैं हाथ सर्द मुलाक़ात की तरह

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देखा तो ज़िंदगी में बहुत कामयाब थे

सोचा तो जीत आई नज़र मात की तरह

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पड़ोसी तू बता हम को तो कुछ होश नहीं

था हमारा भी कोई घर तिरे घर से पहले

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शब पलंग पर हाँपते साए रहे

ख़्वाब दरवाज़े खड़ा तकता रहा

पुस्तकें 9

 

चित्र शायरी 1

 

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