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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ज़की काकोरवी

ग़ज़ल 7

अशआर 25

जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह

गुज़रती है जो दीवानों पे दीवाने समझते हैं

मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में

तुम को अक्सर क़रीब पाया है

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मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या

हर रोज़ एक ताज़ा क़यामत की आरज़ू

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लोग कहते रहे क़रीब है वो

हम ने ढूँडा तो दूर दूर था

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साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं

ये निगाहों का क़ौल-ए-मुबहम क्या

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पुस्तकें 32

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