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नज़्म
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
इक मस्कन-ए-अशरार-ओ-आज़ार है ये दुनिया
इक मक़्तल-ए-अहरार-ओ-अबरार है ये दुनिया
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
ये मंज़र देख कर साहिल की हैरानी नहीं जाती
मुझे छू कर भी कोई मौज-ए-तूफ़ानी नहीं जाती
अबरार अहमद काशिफ़
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ग़ज़ल
बोलने का नहीं चुप रहने का मन चाहता है
ऐसे हालात में तू लुत्फ़-ए-सुख़न चाहता है