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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
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नज़्म
हिन्द के जाँ-बाज़ सिपाही
वार भूले से भी पड़ता नहीं ओछा उन का
हाथ होता है ज़बाँ की तरह सच्चा उन का
बर्क़ देहलवी
ग़ज़ल
सभी मजरूह हैं इस सैद-गाह-ए-ऐश-ओ-हिरमाँ में
किसी का ज़ख़्म ओछा है किसी का ज़ख़्म गहरा है
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
प्रीत-नगर की रीत नहीं है ऐसा ओछा-पन बाबा
इतनी सुध-बुध किस को यहाँ जो सोचे तन-मन-धन बाबा