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नज़्म
रामायण का एक सीन
देखो ये क़ुदरत-ए-चमन-आरा-ए-रोज़गार
वो अब्र-ओ-बाद ओ बर्फ़ में रहते हैं बरक़रार
चकबस्त बृज नारायण
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ग़ज़ल
थी तिरी याद भी क्या अंजुमन-आरा-ए-ख़याल
दिल में जो शोला उठा शम-ए-शबिस्ताँ समझा